RTI ACTIVISTS FORUM M.P.

RTI ACTIVISTS FORUM M.P.

गुरुवार, 18 नवंबर 2021

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय सूचना का अधिकार अधिनियम 2006

  

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय सूचना का अधिकार अधिनियम 2006


*मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय सूचना का अधिकार अधिनियम 2006*

अधिसूचना संख्या 15-आर (जे), दिनांक 19-1-2006, म.प्र. राजपत्र भाग 4 (गा), दिनांक 17-2-2006 के पृष्ठ 161-166 mp694

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 28 की उप-धारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (सक्षम प्राधिकारी), इसके द्वारा निम्नलिखित नियम बनाते हैं: -

*1. संक्षिप्त शीर्षक और प्रारंभ।*

- (1) इन नियमों का संक्षिप्त नाम मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (सूचना का अधिकार) नियम, 2006 है। (2) वे आधिकारिक राजपत्र में उनके प्रकाशन की तारीख से लागू होंगे।

*2. परिभाषाएँ।*

- (1) इन नियमों में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो:- (ए) "अधिनियम" का अर्थ सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (2005 की संख्या 22) है; (बी) "अपील प्राधिकरण" का अर्थ है मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित; (सी) "अधिकृत व्यक्ति" का अर्थ है मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित जन सूचना अधिकारी और सहायक जन सूचना अधिकारी; (डी) "फॉर्म" का मतलब इन नियमों से जुड़ा फॉर्म है; (ई) "धारा" का अर्थ अधिनियम का एक खंड है।
(2) इन नियमों में प्रयुक्त लेकिन परिभाषित नहीं किए गए शब्दों और अभिव्यक्तियों का वही अर्थ होगा जो उन्हें अधिनियम में दिया गया है।

*3. सूचना मांगने के लिए आवेदन।*

- अधिनियम के तहत जानकारी मांगने वाला कोई भी व्यक्ति अधिकृत व्यक्ति को फॉर्म 'ए' में आवेदन करेगा और अधिकृत व्यक्ति के पास नियम 8 के अनुसार आवेदन शुल्क जमा करेगा। प्राधिकृत व्यक्ति फॉर्म 'बी' में दिए गए अनुसार आवेदन को विधिवत स्वीकार करेगा।

*4. प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा आवेदन का निपटान*।

- (1) यदि अनुरोधित जानकारी अधिकृत व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती है, तो यह आवेदक को आवेदन पत्र को फॉर्म 'सी' में जल्द से जल्द, सामान्य रूप से पंद्रह दिनों के भीतर और किसी भी मामले में बाद में नहीं लौटाने का आदेश देगा। आवेदन की प्राप्ति की तारीख से तीस दिन, आवेदक को सूचित करना। जहां भी संभव हो, संबंधित प्राधिकारी के बारे में जिसे: आवेदन किया जाना चाहिए। ऐसे मामलों में जमा किया गया आवेदन शुल्क वापस नहीं किया जाएगा। (2) यदि अनुरोधित जानकारी अधिकृत व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र में आती है और अधिनियम की धारा 8 और 9 में सूचीबद्ध प्रतिबंधों की एक या अधिक श्रेणियों में आती है, तो अधिकृत व्यक्ति संतुष्ट होने पर फॉर्म 'डी' में अस्वीकृति आदेश जारी करेगा। ' जितनी जल्दी हो सके, आम तौर पर पंद्रह दिनों के भीतर और किसी भी मामले में आवेदन प्राप्त होने की तारीख से तीस दिनों के बाद नहीं। ऐसे मामलों में जमा किया गया आवेदन शुल्क वापस नहीं किया जाएगा। (3) यदि अनुरोधित जानकारी अधिकृत व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र में आती है, लेकिन अधिनियम की धारा 8 और 9 में सूचीबद्ध एक या अधिक श्रेणियों में नहीं आती है, तो अधिकृत व्यक्ति, संतुष्ट होने पर, आवेदक को फॉर्म में जानकारी की आपूर्ति करेगा। 'ई', अपने अधिकार क्षेत्र में आता है। यदि मांगी गई जानकारी आंशिक रूप से अधिकृत व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र से बाहर है या आंशिक रूप से अधिनियम की धारा 8 और 9 में सूचीबद्ध श्रेणियों में आती है, तो अधिकृत व्यक्ति केवल वही जानकारी प्रदान करेगा जो अधिनियम के तहत अनुमत है और अपने अधिकार क्षेत्र में है और शेष भाग को कारण बताते हुए अस्वीकृत करें। (4) सूचना की आपूर्ति यथाशीघ्र, सामान्यतया पंद्रह दिनों के भीतर और किसी भी स्थिति में आवेदन प्राप्त होने की तारीख से तीस दिनों के भीतर, शेष राशि, यदि कोई हो, को अधिकृत व्यक्ति को जमा करने पर की जाएगी, जानकारी एकत्र करने से पहले। फॉर्म 'एफ' में सूचना की प्राप्ति के टोकन के रूप में आवेदक से एक उचित 'पावती' प्राप्त की जाएगी।

*5. अपील।*
- (1) कोई भी व्यक्ति:- (ए) जो फॉर्म 'ए' जमा करने के तीस दिनों के भीतर अधिकृत व्यक्ति से फॉर्म 'सी' या फॉर्म 'डी' में प्रतिक्रिया देने में विफल रहता है, या (बी) निर्धारित अवधि के भीतर प्राप्त प्रतिक्रिया से व्यथित है, अपीलीय प्राधिकारी के पास प्रपत्र 'एफ' में अपील और अपीलीय प्राधिकारी के पास नियम 8 के अनुसार अपील के लिए शुल्क जमा करता है। (2) अपील प्राप्त होने पर, अपील प्राधिकारी अपील की प्राप्ति की पावती देगा और आवेदक को सुनवाई का अवसर देने के बाद इसे प्रस्तुत करने की तारीख से तीस दिनों के भीतर निपटाने का प्रयास करेगा और इसकी एक प्रति भेजेगा संबंधित अधिकृत व्यक्ति को निर्णय। (3) यदि अपील की अनुमति दी जाती है, तो अपील प्राधिकारी द्वारा आदेशित अवधि के भीतर अधिकृत व्यक्ति द्वारा आवेदक को जानकारी प्रदान की जाएगी। यह अवधि आदेश प्राप्त होने की तिथि से तीस दिनों से अधिक नहीं होगी।

*6. लोक प्राधिकरण द्वारा सूचना का स्वत: प्रकाशन।*

- (1) लोक प्राधिकरण अधिनियम की धारा 4 की उप-धारा (1) के अनुसार प्रत्येक वर्ष उप-धारा ( 1) अधिनियम की धारा 4 के। (2) ऐसी सूचना सूचना काउंटरों, इंटरनेट के माध्यम से भी जनता को उपलब्ध करायी जा सकती है और प्राधिकृत व्यक्ति और अपीलीय प्राधिकारी के कार्यालय में विशिष्ट स्थानों पर नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित की जा सकती है।

*7. शुल्क लगाना।*

- (1) प्राधिकृत व्यक्ति निम्नलिखित दरों पर शुल्क वसूल करेगा, अर्थात्:- (ए) आवेदन शुल्क :

(i) निविदाओं से संबंधित जानकारी दस्तावेज़/बोली/उद्धरण/व्यवसाय संपर्क : पांच सौ रुपए प्रति आवेदन। (ii) उपरोक्त (i) के अलावा अन्य जानकारी पचास रुपये प्रति आवेदन (बी) अन्य शुल्क: क्र.सं. जानकारी का विवरण कीमत/शुल्क रुपये में 1 जहां जानकारी उपलब्ध है एक मूल्य प्रकाशन का रूप। प्रकाशन की कीमत इतनी तय। 2 मूल्य प्रकाशन के अलावा अन्य के लिए। माध्यम की लागत या प्रिंट लागत मूल्य। (2) अपीलीय प्राधिकारी प्रति अपील पचास रुपए का शुल्क वसूल करेगा।

सोमवार, 6 जुलाई 2020

दुल्हन की डोली उठने से पहले उठी अर्थी, ब्यूटी पार्लर के अंदर घुस कर, धारदार हथियार से कर डाली दुल्हन की हत्या

IMG-20200706-WA0022 copy
सनकी प्रेमी ने शादी के कूछ घंटो पहले कर दी दुल्हन की हत्या
TOC NEWS @ www.tocnews.org
ब्यूरो चीफ नागदा, जिला उज्जैन // विष्णु शर्मा 8305895567
  • सनकी प्रेमी ने शादी के कूछ घंटो पहले कर दी दुल्हन की हत्या
  • दुल्हन की डोली उठने से पहले उठी अर्थी
  • ब्यूटी पार्लर में घुसकर रेत दिया दुल्हन का गला

तीन साल पहले विवाह समारोह में हुई थी मुलाकात, युवती की शादी से नाराज होकर पागल प्रेमी ने वारदात को दिया अंजाम।

एक तरफा प्यार के चक्कर में रतलाम के एक पागल प्रेमी ने शादी के कुछ घंटो पहले दुल्हन का गला रेत कर हत्या कर दी। रविवार को ब्यूटी पार्लर में घुसकर सिरफिरे आशिक ने दुल्हन का गला रेत डाला । दुल्हन की मौके पर ही मौत हो गई । रतलाम एसपी गौरव तिवारी ने तत्काल सिरफिरे आशिक के एक साथी धर दबोचा । जिससे हत्यारे आशिक के बारे में पुलिस जानकारी निकाल पाई।
सनकी प्रेमी ने शादी के कूछ घंटो पहले कर दी दुल्हन की हत्या
सनकी प्रेमी ने शादी के कूछ घंटो पहले कर दी दुल्हन की हत्या
जावरा शहर के ब्यूटी पार्लर में मेकअप करवाने पहुंची सोनू पिता कमल सिंह यादव निवासी शाजापुर की गला रेत कर  सिरफिरे आशिक ने हत्या कर दी। जावरा पुलिस के अनुसार सोनू अपनी बहन के साथ ब्यूटी पार्लर में मेकअप करवाने  पहुंची थी। सरफिरे आशिक  ने फोन लगाकर सोनू को बाहर बुलाया। कुछ देर चर्चा के बाद सोनू वापस ब्यूटी पार्लर के अंदर चली गई। जिसके बाद युवक अंदर घुसा और उसने सोनू का गला रेत दिया ।
हत्या के बाद आरोपी आशिक मौके से फरार हो गया। रतलाम एसपी गौरव तिवारी ने कार्रवाई करते हुए कुछ ही घंटों के अंतराल में मुख्य आरोपी के साथी पवन को हिरासत में ले लिया। पूछताछ में पवन ने बताया कि वह राम उर्फ रामा के साथ बाइक पर ब्यूटी पार्लर गया था। उसके फोन से ही राम यादव ने सोनू को बाहर बुलाया था। 
ratlam_murde Crazy lover murdered bride before marriage ANI NEWS 01
सनकी प्रेमी ने शादी के पहले कर दी दुल्हन की हत्या
हत्यारे की जानकारी सामने आते ही पुलिस हरकत में आई और उसकी तलाश में पुलिस टीम राजस्थान भेजी गई है। पुलिस सुत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आरोपी रतलाम भारतीय जनता युवा मोर्चा  का मंत्री बताया जा रहा है। फिलहाल पुलिस उसकी तलाश में जुटी हुई है।
जावरा पुलिस ने बताया कि सोनू मूल रूप से शाजापुर की रहने वाली है। उसकी उज्जैन जिले के नागदा तहसील में रहने वाले गौरव जैन से रविवार को एक रिसोर्ट में शादी होने वाली थी। वह अपनी बहन के साथ मेकअप करवाने के लिए ब्यूटी पार्लर आई थी। इसी दौरान उसकी राम यादव ने गला रेत कर हत्या कर दी। पुलिस के अनुसार आरोपी और सोनू की मुलाकात शाजापुर में एक विवाह समारोह में हुई थी। जिसके बाद से वह सोनू से एक तरफा प्यार करता था। पुलिस को शंका है कि सोनू की शादी की जानकारी मिलने के बाद ही उसने हत्या की योजना बनाई होगी।
ratlam_murde Crazy lover murdered bride before marriage ANI NEWS 03
इस दुल्हन की डोली उठने से पहले उठी अर्थी
शाजापुर निवासी सोनू की हत्या के पहले आरोपी ने अपने दोस्त पवन के मोबाइल से उसे फोन लगाया था। उस समय वह ब्यूटी पार्लर में मेकअप करवाने के लिए पहुंची थी। ब्यूटी पार्लर के बाहर कुछ देर बात करने के बाद जब सोनू अंदर गई तो राम ने अंदर घुसकर चाकू से सोनू का गला रेत दिया था। जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। घटना के बाद पुलिस ने जब दुल्हन सोनू के मोबाइल की कॉल डिटेल निकाली तो आखरी कॉल पवन के मोबाइल से आना सामने आया। पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए पवन को हिरासत में ले लिया।

मंगलवार, 23 जनवरी 2018

आइसना का सम्मेलन में हुई पत्रकारों पर बढ़ती चुनोतियो को लेकर चर्चा

Image may contain: 18 people, people smiling, people sitting and people standing

आइसना AISNA का सम्मेलन में हुई पत्रकारों पर बढ़ती चुनोतियो को लेकर चर्चा, जिला स्तरीय पत्रकार सम्मेलन
नरसिंहपुर। आॅल इंडिया स्मॉल न्यूज पेपर एसोसिएशन (आइसना) द्वारा नारोलिया भवन मे आयोजित पत्रकार सम्मेलन व सम्मान समारोह मे प्रदेश के जाने-माने पत्रकारों ने शिरकत करते हुए पत्रकारिता की चुनौतियों, विसंगतियों व समस्याओं को रेखांकित कर जिले मे विगत 15 वर्ष व इससे अधिक समय से कार्यरत मीडिया कर्मियों का सम्मान किया।
आइसना के जिलाध्यक्ष मंजीत छावड़ा के संयोजन मे आयोजित उक्त गरिमामय कार्यक्रम मे आइसना प्रदेशाध्यक्ष विनोद मिश्रा आइसना प्रदेश संरक्षक नन्दकुमार चौहान
सहित वरिष्ठ पत्रकार व संपादकों मे विनय डेबिड, शंभुनारायण शर्मा, तपेश्वर जी, दिनेश साहू, अनिल सेन, प्रशांत विश्वे आदि मौजूद रहे। इस मौके पर संगठन के प्रदेशाध्यक्ष विनोद मिश्रा ने पत्रकारिता के सभी पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए वर्तमान दौर मे व्याप्त कठिनाईयों को भी उल्लेखित किया।
वरिष्ठ पत्रकार विनय डेबिड ने पत्रकारिता क्षेत्र की समस्याओं के निदान हेतु पत्रकारों की एकता पर बल दिया। अन्य अतिथियों भी अपने विचार रखते हुए उपस्थित पत्रकारों से संवाद स्थापित करते हुए उनकी जिज्ञासाओं को शांत किया। द्वितीय सत्र मे जिले की प्रिंट मीडिया मे लंबे समय से अपनी सक्रिय सेवायें दे रहे पत्रकारों का सम्मान किया गया।
जिनमें नरसिंहपुर से वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र श्रीवास्तव, नीलेश जाट, दीपक श्रीवास्तव, वारिज बाजपेयी, अमर नौरिया, सलामत खान, समीर खान, मनीष साहू, गाडरवारा से प्रहलाद कौरव एवं जबलपुर से आयशा खान, जुवैद शेख, वीरेंद्र सिंह, अंकित मिश्रा आदि को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन कवि डॉ. विवेक सक्सेना एवं आभार प्रदर्शन मंजीत छावड़ा द्वारा किया गया। 
Image may contain: 7 people, people smiling, people standing and indoor
कलम के जादूगर वरिष्ठ पत्रकार बारिश बाजपेयी जी को बिगत दिवस "ऑल इंडिया स्माल न्यूज पेपर एसोसिएशन" (आइसना) के आयोजन 20 जनवरी 2018 को के द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया आपको संगठन की तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाइयां
Image may contain: 7 people, people smiling, people standing
Image may contain: 11 people, people smiling, people standing
Image may contain: 14 people, people smiling
Image may contain: 4 people, people sitting
Image may contain: 5 people, people smiling, people standing
Image may contain: 3 people, people standing
Image may contain: 2 people
Image may contain: 8 people, people smiling, people standing and outdoor
Image may contain: 10 people, people sitting
Image may contain: 4 people, people standing and food
Image may contain: 15 people, people smiling, people sitting
Image may contain: 4 people, people standing and food
Image may contain: 5 people, people standing
Image may contain: 14 people, people smiling, people sitting and indoor
Image may contain: 3 people, people standing and stripes
Image may contain: 1 person, standing, sky and outdoor
No automatic alt text available.
Image may contain: one or more people and text
Image may contain: 4 people, people smiling, people sitting
Image may contain: 1 person, smiling, phone and indoor
Image may contain: 5 people, people sitting and indoor
Image may contain: 18 people, people smiling, indoor
Image may contain: 5 people, people smiling, people sitting
नरसिंहपुर. आॅल इंडिया स्मॉल न्यूज पेपर एसोसिएशन (आइसना )

शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

कालेधन को सफेद करने के अपनाये जा रहे नये-नये तरीके

अवधेश पुरोहित // TOC NEWS

भोपाल . मोदी सरकार ने मंगलवार को पाँच सौ और एक हजार रुपये के नोटों को अवैध घोषित कर दिया हो लेकिन लोगों ने अपने जुगाड़ों से नये-नये तरीके खोजना शुरू कर दिये, लोगों ने नोटों को बदलने के लिये दिये जा रहे पचास दिन के समयसीमा से जहाँ मदद मिल रही है वहीं शहरों में इन नोटों के प्रचलन बंद के दिन से ही सराफा, हवाला, जनधन और मंदिरों में दान करने जैसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं, जहाँ लोगों ने आठ नवम्बर को घोषणा होने के बाद सोने-चाँदी की बेहिसाब खरीदी कर अपने काले धन को ठिकाने लगाने का तरीका अपनाया तो वहीं इसके चलते लोगों ने सोने के अनाप-शनाप भाव से जेवर खरीदे।

यही नहीं कई संस्थानों ने अपने कर्मचारियों को अग्रिम वेतन तक का भुगतान कर अपने कालेधन को ठिकाने लगाने का तरीका अपनाया, पैसा बदलने वाले कुछ लोग गरीबी रेखा के नीचे बीपीएल के जनधन बीमा खातों के उपयोग के लिए उन्हें इस्तेमाल करने में लगे हुए हैं तो कारोबारी विभिन्न चिटफण्ड खातों की इस तरह से सरकारी रास्ते का इस्तेमाल कर रहे हैं कि जन-धन योजना के तहत खाते रखने वाले एक समूह को चिन्हित कर कारोबारियों ने अपना पैसा सभी खातों में बांटने का तरीका अपना लिया। यही नहीं तो वही लोगों ने संयुक्त परिवारों का भी सहारा लेना शुरू कर दिया जिसके तहतविभिन्न बैंक खातों में थोड़ी-थोड़ी राशि रखने से बड़ी राशि बंट जाती है

जिससे ज्यादा से ज्यादा रुपये जमा किये जाने का रास्ता लोगों ने निकाल लिया, सरकार ने भी घोषणा कर दी कि गृहणियों की कम जाँच-पड़ताल की जाएगी, इसका लाभ उठाने में भी लोग लग गए, यही नहीं कालेधन को ठिकाने लगाने के लिए लोगों ने मंदिरों का भी सहारा लेना शुरू कर दिया और अपने ५०० और एक हजार के नोटों को १०० रुपये के नोटों में बदल रहे हैं, जैसे कि खबरें सुर्खियों में रहीं उसके तहत भोपाल स्टेशन की यह खबर भी थी कि वहां की तिजोरी से रातोंरात १०० रुपए के नोट बदल गए और उनका स्थान ५०० और एक हजार के नोटों ने ले लिया और वहीं कालेधन के कारोबारी इन दिनों मंदिरों और उनके ट्रस्टों में जमा ५०० और एक हजार रुपए के नोटों को १०० रुपए में बदलने का रास्ता निकाल रहे हैं, बहुत से लोगों ने मंदिरों के प्रबंधकों को विश्वास में लेकर अपना अघोषित धन मंदिरों को दान करने का तरीका निकाला है और ऐसे अज्ञात दानदाताओं के रूप में पावती बनाने का सिलसिला भी जोरों पर चल रहा है।

इस अवैध व्यवस्था में देश से बाहर भेजने के लिए एजेंटों, बिचौलियों का इस्तेमाल भी इन दिनों जोरों पर है, तो वहीं इस तरह के कारोबारियों की निगाहें स्वयं सेवी संगठनों (एनजीओ) और सराफों को मनी लांड्रिंग का जरिया बना लिया है कई जगहों पर खुदरा दुकानदार भी नोट बदलने के केन्द्र बन गये हैं, वह पाँच सौ के नोटों के बदले चार सौ रुपए दे रहे हैं तो वहीं प्रदेश में पाँच सौ और एक हजार के नोटों के बदले २० फीसदी रुपये देने का कारोबार भी प्रचलन में आ गया है जिन लोगों के पास भारी मात्रा में ऐसे नोट हैं वह इसे खपाने के लिये नये-नये तरीके अपनाने में लगे हुए हैं

देखना अब यह है कि नरेन्द्र मोदी के इस निर्णय के बाद जहां देश में बड़े नोटों का चलन ८६ प्रतिशत है ऐसे में इनके बंद किये जाने के बाद इस रकम में से कितनी रकम वापस आती है, सरकार की निगाहें इसी पर लगी हुई है तो इन दिनों देशभर के आयकर और बिक्रीकर विभाग के अधिकारी भी सक्रिय नजर दिखाई दे रहे हैं और वह आठ नवम्बर को पाँच सौ और एक हजार रुपऐ के  नोट बंद होने की घोषणा के बाद देश और प्रदेश में चली धड़ाधड़ बिक्री वाले केन्द्रों से उनके सीसीटीवी कैमरों के फुटेज मांगे जा रहे हैं तो वहीं राज्य के राजनेता भी जिनके पास आकूत सम्पत्ति इस भाजपा शासनकाल के दौरान जमा हुई है

ऐसे राजनेताओं के साथ-साथ अधिकारियों पर भी आयकर विभाग की नजर है, तो वहीं विगत कुछ वर्षों में पति से करोड़पति बने लोगों के भी बारे में खोज-खबर ली जा रही है, सरकार की इन सब गतिविधियों को देखकर यह लग रहा है कि आने वाले समय में कई भ्रष्ट अधिकारियों के साथ-साथ कई ऐसे जनप्रतिनिधियों के बारे में भी खोज खबर ली जा रही है जिनके पास नोट गिनने की मशीने होने की पिछले दिनों खबर सुर्खियों में रही है,

सरकार की इस तरह की गतिविधियों के बीच जहां सरकार कालेधन के कारोबारियों पर निगाहें जमाये बैठी है तो वहीं इन कारोबारियों के द्वारा अपनाई जा रही नई नई नीतियों पर भी आयकर विभाग की नजर है, कुल मिलाकर इन दिनों राज्य के मंत्रालय से लेकर राजनैतिक माहौल में भी ५०० और एक हजार के नोट बंद होने के बाद खामोशी छाई हुई है और लोग चुपचाप अपने कालेधन को ठिकाने के नये-नये तरीके खोजने में लगे हैं तो वहीं ऐसे कारोबारियों की काली रकम को लगाने के लिये भी कई उनके हमदर्द भी हमदर्दी दिखाते नजर आ रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर लोग कालेधन के पुजारियों को फोन कर उन्हें काला धन निकालने का सलाह मशवरा देते दिखाई दे रहे हैं।

सुचना का अधिकार की धज्जियां उड़ाते मुख्यवन संरक्षक बिलासपुरव्रत के जनसूचना अधिकारी द्वारा

RTI News

प्रदेश सरकार एक ओर राज्य सुचना आयोग के उच्चाधिकारी की नियुक्ति अटका के रखे हैं ,वही प्रदेश में राज्य शासन के जनसूचना अधिकारी पेशी की तारीख तो दे देते लेकिन खुद उपस्थित नही रहते ।

ऐसा ही बिलासपुर मुख्यवनसंरक्षक के जनसूचना अधिकारी जायसवाल जी के द्वारा आज गैर जिम्मेदाराना कार्य किया पेशी के समय कार्यलय में ही नही थे और फोन लगाने के बाद भी जब उन्होंने फोन नही उठाया तो पेशी कर्ता ने उनके आफिस वर्क में अपना साइन कर लिख दिया की जनसूचना अधिकारी खुद अनुपस्थित है जब खबर की जानकारी के लिए मुख्यवन संरक्षक बिलासपुर व्रुत्त के अधिकारी से मिलने की कोशिश की गई लेकिन उनसे भी मुलाकात नही हो सकी ।

ऐसा पहला वाक्य नही हैं प्रदेश के जनसूचना अधिकारी पहले भी इस प्रकार के कार्य करते आये हैं लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री जी को प्रदेश के दूसरे कार्यो से फुर्सत ही नही हैं तभी तो ऐसे अधिकारियो के हौसले बुलंद हैं नही तो पेशी के समय खुद जनसूचना अधिकारी अनुपस्थित रहना अपने कर्तव्यो के प्रति गम्भीर लापरवाही है ऐसे अधकारी को तुरंत राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा तुरन्त निलंबित किया जा सकता हैं लेकिन इस प्रदेश में ऐसा कुछ भी नही होने वाला ।
*गोविन्द शर्मा (पत्रकार )*

गुरुवार, 22 सितंबर 2016

सूचना का अधिकार : 24 बार किया सूचना देने से इनकार, 2.29 लाख रुपए का दंड



RTI News

बेंगलुरु। एक सरकारी अधिकारी ने अलग-अलग मामलों में लगातार 24 बार सूचना देने से इनकार कर दिया। ऐसा करने के लिए सरकारी अधिकारी पर 2.29 लाख रुपए का दंड लगाया गया है। चौंकाने वाली बात तो ये है कि इस अधिकारी ने 1.45 लाख रुपए का भुगतान किया मगर सूचना देने से इनकार कर दिया।

अधिकारी ने नहीं दी सूचना, देता रहा आयोग को मात

सूचना के अधिकार का उल्लंघन करने के लिए कर्नाटक सूचना आयोग ने आरोपी अधिकारी डी हेमंत के खिलाफ आरटीआई एक्ट के सेक्शन 22 के अंतर्गत कार्रवाई करने का फैसला लिया है। डी हेंमत ने बार-बार अपनी चतुराई से सूचना आयोग को मात देने की कोशिश की। कनार्टक सूचना आयोग 2009 से हेमंत के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रहा है। इतने सालों में डी हेमंत एक बार भी आयोग के सामने प्रस्तुत नहीं हुआ। हेमंत की मुश्किल तब शुरू हुई जब वो बु्रहत बेंगलुरु महानगर पालिका में डेप्युटेशन पर सहायक कार्यकारी अभियंता के रूप में नियुक्त हुआ।

24 बार आरटीआई का उल्लंघन कर चुका है हेमंत

हेमंत एक जनसूचना अधिकारी होने बावजूद कई आवेदकों की ओर से मांगी गई जानकारी देने में असमर्थ रहा। इस साल 22 मार्च को जब हेमंत के खिलाफ एक और ऐसा मामला दर्ज हुआ तो राज्य सूचना आयुक्त एल कृष्णामूर्ति ने उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्णय लिया। इस बार हेमंत ने लागारे के रहने वाले टी के रेनुकप्पा को जानकारी देने से इनकार कर दिया। जब इस मामले की जांच हुई तो पता चला कि पहले भी अधिकारी सूचना के अधिकार कानून का उल्लंघन कर चुका है।

पीडब्लयूडी कोर्ट में 19 अक्टूबर को होगी सुनवाई

इस मामले में सूचना आयोग ने शहरी विकास मंत्रालय को लिखा तो पता चला कि हेमंत वापस अपने पुराने विभाग पीडब्लयूडी में जा चुका है। इस समय हेमंत एईई विभाग में काम कर रहा है। जांच के दौरान सूचना आयोग को पता चला कि सूचना के अधिकार कानून का पालन ना करने के लिए हेमंत पर 2.29 का दंड लग चुका है। इसमें से हेमंत ने करीब 1.45 रुपए का दंड भर दिया है मगर सूचना नहीं दी। इस मामले में अब सूचना आयोग ने पीडब्ल्यूडी के प्रिंसिपल सेकेट्री एल लक्ष्मीनारायन से हेमंत के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई करने को कहा है। पीडब्ल्यूडी कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 19 अक्टूबर को होगी।

रविवार, 18 सितंबर 2016

राज्य सूचना आयोग ने बदला परिवहन आयुक्त का फैसला

 Toc ( rti )  News
अपीलार्थी को पंद्रह दिवस में देना होगी नि:शुल्क जानकारी
शिवपुरी। प्रदेश में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का सरकारी कार्यालयों में किस तरह दुरुपयोग हो रहा हैं इसका जीता जागता उदाहरण तब सामने आया जब अपीलार्थी विजय शर्मा बिंदास ने एक अपील दिनांक 7/8/15 को उपपरिवहन आयुक्त ग्वालियर में लगाई गई। जिसमें विजय शर्मा ने जुलाई 2015 को एक परिवहन आयुक्त कार्यालय ग्वालियर से जानकारी मांगी थी की परिवहन विभाग ने अप्रैल 2014 से मार्च 2015 तक स्मार्ट चिप लिमिटेड को कितना भुगतान किया है एवं इस अवधि में उक्त कंपनी के बिलों की छायाप्रति मांगी थी जिनके एवज में भुगतान किया गया है। लेकिन परिवहन उप आयुक्त ने 30 दिवस के अंदर इस कार्यालय के द्वारा अपीलार्थी को किसी भी प्रकार का पत्र नहीं दिया गया जिसके पश्चात अपीलार्थी ने अपीलीय प्रक्रिया को बढ़ाते हुए 20/8/15 को प्रथम अपीलीय अधिकारी परिवहन आयुक्त को प्रेषित की।

यहां भी परिवहन आयुक्त विभाग ने अपनी हीलाहवाली के चलते अपीलार्थी को कोई भी जानकारी दिलवाना सुनिश्चित नहीं किया जो उन्हें 45 दिवस के अंदर अपीलार्थी को प्रदान करना थी, लेकिन 45 दिवस पश्चात 7/10/15 को परिवहन आयुक्त ने पत्र क्रमांक 5017 अपीलार्थी को भेजा जिसमें लोक सूचना अधिकारी अपर परिवहन आयुक्त मप्र ने कोई जबाब नहीं दिया तब परिवहन आयुक्त के समक्ष प्रथम अपील की गयी जिस बिना सुनवाई के फैसला सुनाते हुए उपरोक्त वर्णित कारण बताते हुए जानकारी देने से इंकार कर दिया। जिसके पश्चात अपीलार्थी ने राज्य सूचना आयोग को दूसरी अपील की और तर्क दिया की मप्र शासन के राजपत्र दिनांक 05 दिसंबर 2013 के अनुसार मध्य प्रदेश शासन और स्मार्ट चिप लिमिटिड के मध्य एक बृहद सेवा अनुबंध हुआ है जिसके अनुसार ये कंपनी विभाग को जो भी सेवा उपलब्ध कराएगी उसका भुगतान जनता से वसूल किया जायेगा तो फिर उक्त भुगतान के सम्बन्ध में जानकारी जनता को प्रदान करने में संकोच क्यों और इसे वाणिज्यिक अनुबंध बताया जाना सवर्था गलत है।

जिसकी सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप के द्वारा 1/8/16 को की गई जिसमें अपीलार्थी तो उपस्थित हुआ, लेकिन जवाब प्रस्तुत करने के लिए परिवहन आयुक्त कार्यालय से कोई भी सदस्य उपस्थित नहीं हो सका। जिसके चलते सूचना आयुक्त ने अपनी नाराजगी भी जाहिर की और अपीलार्थी को पंद्रह दिवस में जानकारी उपलब्ध कराने के परिवहन आयुक्त को निर्देश दिए तथा राज्य सूचना आयोग भोपाल ने परिवहन आयुक्त ग्वालियर के उस फैसले को पलट दिया जिसमे परिवहन आयुक्त ने यह कहते हुए जानकारी देने से इंकार कर दिया था कि जानकारी देने से प्राइवेट कंपनी और मध्यप्रदेश शासन के वाणिज्यिक हित प्रभावित होंगे। विदित हो कि करोड़ो रूपए का घोटाला छुपाने की दृष्टि से परिवहन आयुक्त ने प्राइवेट कंपनी स्मार्ट चिप को किये जाने वाले भुगतान की जानकारी देने से इंकार किया था। यह पूरा मामला परिवहन विभाग में स्मार्ट चिप लिमिटिड, जो कि एक प्राइवेट कंपनी है जिस पर विभाग के समस्त कार्यो के कंप्यूटरीकरण करने का ठेका है को अधिक दरों पर ठेका दे कर सेकड़ो करोडों रूपए के भ्रष्टाचार का है जिसमे परिवहन विभाग के समस्त आला अफसर सम्मिलित है इसी मामले को दबाने के लिए जानकारी देने से इंकार किया गया था इस पूरे मामले की शिकायत विजय शर्मा पूर्व में प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह और परिवहन आयुक्त इत्यादि सभी जगह कर चुके है।

अपीलार्थी को 15 दिवस में नि:शुल्क प्रदान करना होगा जानकारी
राज्य सूचना आयोग के आयुक्त ने 1 अगस्त 16 को सुनवाई के दौरान अनुपस्थित रहने के चलते अपीलीय अधिकारी व लोक सूचना अधिकारी परिवहन आयुक्त ग्वालियर को फटकार लगाने के साथ राज्य सूचना आयोग को जानकारी न देने की अलग वजह और आवेदक को अलग वजह बताने पर भ्रामक जानकारी देने पर भी परिवहन आयुक्त के प्रति नाराजगी व्यक्त की साथ ही कहा कि अपीलार्थी को पंद्रह दिवस के अंदर उक्त चाही गई जानकारी नि:शुल्क प्रदान की जाए एवं इस जानकारी से राज्य सूचना आयोग को भी अवगत कराया जाए।

मंगलवार, 23 जून 2015

आरटीआई - सात अफसरों पर 25-25 हजार का जुर्माना

लखनऊ. राज्य सूचना आयुक्त हाफिज उस्मान ने आरटीआई एक्ट का उल्लंघन करने वाले सात अफसरों पर 25 - 25 हजार रुपये का जर्माना लगाया है। साथ ही चार मामलों में उच्चाधिकारियों को जांच के आदेश दिए हैं। जिन अफसरों पर जुर्माना लगाया गया है उनमें संभल के सीएमओ. विद्युत वितरण खंड के अधिशासी अभियंता, जिला पंचायत अधिकारी, कानपुर के क्षेत्रीय दुग्ध विकास अधिकारी, ग्रामीण अभियंत्रण विभाग के निदेशक और उप्र फुटबाल संघ के सचिव प्रमुख हैं।

शनिवार, 13 जून 2015

आइसना एवं RTI फोरम संगठन का संभागीय अधिवेसन 26 जून को खुजराहो में

Toc News @ khujraho

26 जून 2015 को RTI राष्ट्रीय स्तरीय फोरम संगठन व् (आइसना) ऑल इण्डिया स्माल न्यूज़ पेपर संगठन का संभागीय अधिवेसन

पर्यटन नगरी खजुराहो में 26 जून 2015 को RTI राष्ट्रीय स्तरीय फोरम संगठन व् (आइसना) ऑल इण्डिया स्माल न्यूज़ पेपर संगठन का संभागीय अधिवेसन किया जा रहा है. जिसमें आप सबकी उपस्थिति सादर बंदनीय है इस कार्यक्रम में पर्यटन नगरी खजुराहो में 26 जून 2015 को RTI राष्ट्रीय स्तरीय फोरम संगठन व् ऑल इण्डिया स्माल न्यूज़ पेपर संगठन का संभागीय अधिवेसन किया जा रहा है. जिसमें आप सबकी उपस्थिति सादर बंदनीय है इस कार्यक्रम में
1.सूचना का अधिकार के नियम में आवश्यक संशोधन करवाये जाने के बारे में विचार किया जाना है।
2. पत्रकार्ता से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की जानी है
3. इस कार्यक्रम में पत्रकारिता जगत में अपनी कलम का लोहा मनवा चुके नामचीन पत्रकारों का सम्मान किया जाना होगा.
4. सुचना का अधिकार के RTI के सम्बन्ध में नागरिको को जागृत करने वाले व् राजनेतिक क्षेत्र से जनता की लड़ाई लड़ने वाले राजनेता व् बुंदेलखंड के बिकास के सम्बन्ध में कार्य करने वाले समाज सेबियो व अधिकारीओ का भी सम्मान किया जाना हे इस कार्यक्रम में दिल्ली भोपाल सतना सागर से न्यूज़ चैनल व् न्यूज़ पेपर से नामचीन पत्रकार पधार रहे है. इनके आलावा खजुराहो के लोकप्रिय सांसद नागेन्द्र सिंह जी फ़िल्म एक्टर राजा बुन्देला जी संभागीय कमिश्नर आर के माथुर जी जिले डीएम मसूद अख्तर जी एस पी ललित सक्वार् जी विधायक विक्रम जी नगर पालिका अध्यक्ष अर्चना सिंह जी नगर परिषद अध्यक्ष महारानी कविता सिंह जी भाजपा की युबा पहचान पुष्पेन्द्र सिंह गुड्डू राजा जी डिप्टी कलेक्टर एसडीऍम एसडीओपी तहसीलदार टीआई CIO Cmo Sdo को अमंत्रित किया गया है.

कार्यक्रम स्थल यूथ हॉस्टल खजुराहो समय सुबह 10 से साम 6 तक  कार्यक्रम के अयोजक देवेन्द्र चतुर्वेदी सम्भागीय अध्यक्ष RTI एवं जिला अध्यक्ष ऑल इंडिया स्माल न्यूज़ पेपर संगठन व् सांसद मिडिया प्रभारी खजुराहो व विनय जी डेविड RTI व् "आल इण्डिया स्माल न्यूज पेपर एसोशिएशन" के प्रदेश महासचिव का भी सम्मान किया जाना है

शुक्रवार, 12 जून 2015

फर्म्स एवं सोसायटी विभाग में आरटीआई नियम लागू नहीं

Bhopal @ Vinay David


भोपाल। प्रदेश स्थित फर्म्स एवं संस्थाएं विभाग में सूचना के अधिकार के तहत अपने नियम बनाकर राष्ट्रीय नियमों को दरकिनार करके 10 गुना अधिक फीस सूचना मांगने वालों से वसूली जाती है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश वाणिज्य विभाग के अंतर्गत आने वाले उक्त विभाग रजिस्ट्रार फर्म एवं संस्थाएं द्वारा आरटीआई के तहत आने वाले आवेदनों को 10 गुन अधिक यानी 20रू. एवं 40 रू प्रति काॅपी के हिसाब जानकारी देने के लिये, लिखकर बकायदा मांगे जाते हैं, आर टी आई कार्यकर्ताों ने एतराज करते हुये, कहा कि मप्र का उक्त विभाग पूरे देश नियमों से कैसे अलग हो सकता है।

पूरे देश में सूचना के अधिकार के तहत 2 रूपये प्रति पेज जानकारी के हिसाब से लिये जाने का नियम हैं, जबकि म.प्र. उक्त विभाग ने अपने मनमाने नियम थोपकर उन्हें जोड़तोड़ से प्रकाशित कर सूचना अधिकार को हतोत्साहित करने के लिये अलग नियम बना लिये हैं और आश्चर्य की बात यह है कि म.प्र. सरकार और केन्द्र सरकार को कई बार शिकायतें होने के बाद भी उक्त विभाग द्वारा 10 गुना वसूली जारी है।

इससे आरटीआई मांगने वाले लोगों में भारी असंतोष है, केन्द्रीय और राज्य सूचना आयोग आरटीआई कार्यकर्ताओं के राष्ट्रीय संगठन RTI ACTIVISTS FORUM  ने मांग की है कि जनहित में 10 गुना अधिक पैसे लेने के नियम को तुरंत खत्म किया जाये और इस नियम को बनाने की कार्यवाही की जाये।

आरोप, प्रत्यारोप, शिकायतें एवं समाचार कृपया इस ईमेल timesofcrime@gmail.com पर भेजें। यदि आप अपना नाम गोपनीय रखना चाहते हैं तो कृपया स्पष्ट उल्लेख करें। आप हमें 9893221036 पर whatsapp भी कर सकते हैं। अपनी प्रतिक्रियाएं कृपया नीचे दर्ज करें।


आरटीआई एक्टिविस्ट्स फोरम इंडिया यूनिट मध्यप्रदेश में हर सम्भाग और जिला में इकाइयों का गठन किया जाना है। गैर राजनैतिक साथी आमन्त्रित हैं। प्लीज हमसे संपर्क कीजिये।

विनय जी. डेविड
प्रदेश महासचिव ( म.प्र.)
+919893221036
RTI ACTIVISTS FORUM M.P.
राष्ट्रीय स्तरीय फोरम (संगठन)

RTI प्रथम अपील कब और कैसे करें

प्रथम अपील कब और कैसे करें
*******************
प्रस्तुत - RTI rti

आपने सूचना पाने के लिए किसी सरकारी विभाग में आवेदन किया है, 30 दिन बीत जाने के बाद भी आपको सूचना नहीं मिली या मिली भी तो ग़लत और आधी-अधूरी अथवा भ्रामक। या फिर सूचना का अधिकार क़ानून की धारा 8 के प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर आपको सूचना देने से मना कर दिया गया। यह कहा गया कि फलां सूचना दिए जाने से किसी के विशेषाधिकार का हनन होता है या फलां सूचना तीसरे पक्ष से जुड़ी है इत्यादि। अब आप ऐसी स्थिति में क्या करेंगे? ज़ाहिर है, चुपचाप तो बैठा नहीं जा सकता। इसलिए यह ज़रूरी है कि आप सूचना का अधिकार क़ानून के तहत ऐसे मामलों में प्रथम अपील करें।

जब आप आवेदन जमा करते हैं तो उसके 30 दिनों बाद, लेकिन 60 दिनों के अंदर लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ अधिकारी, जो सूचना क़ानून के तहत प्रथम अपीलीय अधिकारी होता है, के यहां अपील करें। यदि आप द्वारा अपील करने के बाद भी कोई सूचना या संतोषजनक सूचना नहीं मिलती है या आपकी प्रथम अपील पर कोई कार्रवाई नहीं होती है तो आप दूसरी अपील कर सकते हैं। दूसरी अपील के लिए आपको राज्य सूचना आयोग या केंद्रीय सूचना आयोग में जाना होगा। फिलहाल इस अंक में हम स़िर्फ प्रथम अपील के बारे में ही बात कर रहे हैं। हम प्रथम अपील का एक प्रारूप भी प्रकाशित कर रहे हैं।

प्रथम अपील के लिए आमतौर पर कोई फीस निर्धारित नहीं है। हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने अपने यहां प्रथम अपील के लिए भी शुल्क निर्धारित कर रखा है। प्रथम अपील के लिए कोई निश्चित प्रारूप (फॉर्म) नहीं होता है। आप चाहें तो एक सादे काग़ज़ पर भी लिखकर प्रथम अपील तैयार कर सकते हैं। हालांकि इस मामले में भी कुछ राज्य सरकारों ने प्रथम अपील के लिए एक ख़ास प्रारूप तैयार कर रखा है। प्रथम अपील आप डाक द्वारा या व्यक्तिगत रूप से संबंधित कार्यालय में जाकर जमा करा सकते हैं।

प्रथम अपील के साथ आरटीआई आवेदन, लोक सूचना अधिकारी द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना (यदि उपलब्ध कराई गई है तो) एवं आरटीआई आवेदन के साथ दिए गए शुल्क की रसीद आदि की फोटोकॉपी लगाना न भूलें। इस क़ानून के प्रावधानों के अनुसार, यदि लोक सूचना अधिकारी आपके द्वारा मांगी गई सूचना 30 दिनों के भीतर उपलब्ध नहीं कराता है तो आप प्रथम अपील में सारी सूचनाएं नि:शुल्क उपलब्ध कराने के लिए भी कह सकते हैं। इस क़ानून में यह एक बहुत महत्वपूर्ण प्रावधान है। भले ही सूचना हज़ार पन्नों की क्यों न हो। हम उम्मीद करते हैं कि आप इस अंक में प्रकाशित प्रथम अपील के प्रारूप का ज़रूर इस्तेमाल करेंगे और अन्य लोगों को भी इस संबंध में जागरूक करेंगे।

गुरुवार, 11 जून 2015

"देवेन्द्र चतुर्वेदी" सागर "सम्भाग अध्यक्ष" नियुक्त

"देवेन्द्र चतुर्वेदी" सागर "सम्भाग अध्यक्ष" नियुक्त

राष्ट्रीय स्तरीय फोरम (संगठन)
RTI ACTIVISTS FORUM M.P. की सागर सम्भाग इकाई में पत्रकार, एवं आर टी आई कार्यकर्ता साथी "देवेन्द्र चतुर्वेदी" खुजराहो को " सागर सम्भाग का अध्यक्ष "नियुक्त" किया जाता हैं।
सम्पर्क मोबाइल- +919425146179

"देवेन्द्र चतुर्वेदी जी" को सागर "सम्भाग अध्यक्ष" बनाये जाने पर हार्दिक बधाईयां...
💐💐💐💐💐
शुभकामनाओं सहित:
समस्त सदस्य एवं पदाधिकारी गण

सैयद महमूद अली चिश्ती, प्रांताध्यक्ष सूचना का अधिकार मंच भारत, शाखा: मध्यप्रदेश
+91 94250 41700

विनय जी. डेविड
प्रदेश महासचिव ( म.प्र.)
+9198932 21036
RTI ACTIVISTS FORUM M.P.
राष्ट्रीय स्तरीय फोरम (संगठन)
11/06/2015

मंगलवार, 2 जून 2015

27 मई से बी डी ए भोपाल के "सूचना के अधिकार" का कार्य भगवान भरोसे

27 मई से बी डी ए भोपाल के "सूचना के अधिकार" का कार्य भगवान भरोसे
Toc News @ bhopal
भोपाल . "सूचना के अधिकार" के विभाग के सूचना अधिकारी के निलंबित होने के बाद भोपाल विकास प्राधिकरण में सूचना के अधिकार का काम भगवान भरोसे चल रहा है. सूचना के तहत जानकारी चाहने वाले लगातार चक्कर लगा रहे है. जिस पर सूनने वाला कोई नही.
ज्ञात हो की मोदी का एक प्ररकरण में 21 मई को निलंवित कर दिये गये जिसके बाद 26 को मुकुल गुप्ता को सूचना अधिकारी का प्रभार सौपा गया दो दिन कार्य करने के बाद वो भी अवकाश में निकल लिये.

इसके बाद आर के खरे को प्रभार दिया गया उनकी रूचि नही होने के कारण उनका आदेश निरस्त कर श्रीमति लता अग्रवाल को नियमित कार्य करने को आदेशित किया परन्तु उन्होने भी अवकाश का रास्ता पकड लिया. आज खबर लिखे जाने तक सूचना विभाग का कार्य भगवान भरोसे चल रहा है. बीडीए का सत्यानाश करने वाले प्रभारियों की वजह से सरकारी योजनाओं का बन्टाधार हो रहा है.

सोमवार, 1 जून 2015

मध्यप्रदेश, सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 / प्रारूप

सूचना का अधिकार अधिनियम

सूचना का अधिकार क्या है- सूचना के अधिकार के तहत भारत का कोई भी नागरिक, किसी भी लोक प्राधिकारी अथवा उसके नियंत्रणाधीन, किन्ही भी दस्तावेजों#अभिलेखों का निरीक्षण कर सकता है, इन अभिलेखों#दस्तावेजों की प्रामाणिक प्रति प्राप्त कर सकता है, जहां सूचना किसी कम्प्यूटर या अन्य युक्ति में भंडारित है, तो ऐसी सूचना को फ्लापी#डिस्केट#टेप या वीडियो कैसेट के रूप में प्राप्त कर सकता है। साथ ही इस अधिकार के तहत सामग्री के प्रामाणिक नमूने लेने का भी प्रावधान है।
सूचना किससे मांगी जा सकती है- इस अधिनियम के तहत किसी भी शासकीय कार्यालय से जानकारी मांगी जा सकती है। इसके साथ ही स्वायत्त शासन या निकाय या संस्था, जो संविधान के द्वारा या संसद द्वारा बनाये गये विधि द्वारा या राज्य विधानमण्डल द्वारा बनाये गये विधि से या सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना या किये गये आदेश द्वारा स्थापित या गठित है, से भी जानकारी मांगी जा सकती है। ऐसे अशासकीय संगठन, जिनके वार्षिक 'टर्नओवर' का पचास प्रतिशत या रुपये पचास हजार, जो भी कम हो, शासन या उसकी किसी संस्था से अनुदान के रूप में या अन्यथा वित्तीय रूप से पोषित होने पर ऐसी संस्थाओं से भी सूचना मांगी जा सकती है।
सूचना प्राप्त करने हेतु निर्धारित शुल्क- इस अधिनियम के तहत जानकारी प्राप्त करने हेतु राज्य शासन द्वारा सूचना का अधिकार (फीस एवं अपील) नियम, 2005 बनाये गये हैं, जो कि दिनांक 10 नवंबर, 2005 के राजपत्र में भी प्रकाशित हैं। सूचना प्राप्त करने हेतु निर्धारित शुल्क निम्नानुसार है :-

1. आवेदन शुल्क-         रुपये 10/-
2.प्रथम अपील शुल्क-   रुपये 50/-

3. द्वितीय अपील शुल्क- रुपये 100/-

4. प्रमाणित प्रति शुल्क-

रुपये 2/- प्रति पृष्ठ
(ए-3, ए-4 साइज पेपर हेतु)

5. निरीक्षण शुल्क-

प्रथम घंटा अथवा उससे कम समय के लिए रुपये 50#-, तथा उसके पश्चात रुपये 25/- प्रत्येक 15 मिनिट अथवा उसके भाग के लिए।

6. फ्लापी या डिस्केट में जानकारी हेतु शुल्क

रुपये 50/- प्रति फ्लापी#डिस्केट

7. सत्यापित नमूना हेतु शुल्क

जैसा कि लोक सूचना अधिकारी द्वारा निर्धारित किया जाए।

उपरोक्तानुसार निर्धारित शुल्क नगद अथवा नॉन ज्यूडिशियल स्टाम्प के रूप में जमा किया जा सकता है।
गरीबी रेखा के नीचे के व्यक्ति के लिए विशेष प्रावधान- गरीबी रेखा से नीचे के व्यक्ति को सत्यापित नमूने (उपरोक्त अनुक्रमांक-7 पर उल्लेखित) के शुल्क को छोड़कर अन्य सभी शुल्कों (अनुक्रमांक 1 से 6 तक उल्लेखित) से छूट प्राप्त है। इस प्रकार गरीबी रेखा से नीचे का व्यक्ति सत्यापित नमूने को छोड़कर अन्य सभी जानकारी नि:शुल्क प्राप्त कर सकता है एवं उसे आवेदन तथा अपील शुल्क से भी छूट प्राप्त है।

सूचना प्राप्त करने की प्रक्रिया- 
राज्य शासन के प्रत्येक विभाग द्वारा उनके अधीनस्थ कार्यालयों में सहायक लोक सूचना अधिकारी#लोक सूचना अधिकारी एवं अपीलीय प्राधिकारी नामांकित किये है। जानकारी प्राप्त करने के लिये व्यक्ति को, जिस कार्यालय से संबंधित जानकारी प्राप्त करना हो, उस कार्यालय के लोक सूचना अधिकारी को मांगी गई सूचना का स्पष्ट उल्लेख करते हुये आवेदन करना होगा। आवेदन पत्र में संपर्क पता स्पष्ट रूप से अंकित किया जाना चाहिये। आवेदन पत्र के साथ निर्धारित शुल्क, नॉन ज्युडिशियल स्टाम्प के रूप में अथवा संबंधित कार्यालय में नगद रूप से जमा किया जा सकता है यदि आवेदक अभिलेखों का निरीक्षण करना चाहता है अथवा प्रमाणित नमूना चाहता है तो इस संबंध में स्पष्ट उल्लेख आवेदन में किया जायेगा। लोक सूचना अधिकारी द्वारा आवेदन प्राप्त होने पर सूचना की लागत के संबंध मेें आवेदक को सूचित किया जायेगा।

 आवेदक द्वारा सूचना की लागत नगद रूप से संबंधित कार्यालय में अथवा नॉन ज्यूडिशियल स्टाम्प के रूप में जमा किये जाने पर आवेदक को लोक सूचना अधिकारी द्वारा जानकारी उपलब्ध कराई जायेगी। लोक सूचना अधिकारी द्वारा 30 दिन के अंदर आवेदक को जानकारी उपलब्ध कराना है, परन्तु राशि जमा करने की सूचना भेजने एवं आवेदक द्वारा राशि जमा करने की तिथि के बीच की अवधि उक्त गणना में शामिल है।

जानकारी उपलब्ध न कराने पर दंड- 

यदि लोक सूचना अधिकारी द्वारा आवेदन लेने से इंकार किया जाता है, समय सीमा के अंदर सूचना नहीं दी जाती है या असद्भावना पूर्वक सूचना देने से इंकार किया जाता है या जानबूझकर गलत, अपूर्ण या भ्रामक जानकारी दी जाती है या सूचना को नष्ट किया जाता है, तो ऐसी परिस्थिति में सूचना आयोग द्वारा लोक सूचना अधिकारी को दंडित किया जा सकता है। यह दंड 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से कुल 25000 रुपये तक का हो सकता है। इसके साथ ही सूचना आयोग, लोक सूचना अधिकारी के उपरोक्त कृत्यों के लिये सेवा नियमों के अधीन अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिये राज्य सरकार को सिफारिश भी कर सकता है।
नोट :- सूचना का अधिकार अधिनियम, 05 अंतर्गत जारी अधिसूचना#परिपत्र तथा अन्य जानकारी सामान्य प्रशासन विभाग की वेबसाइट www.mp.nic.in/gad पर 'Right to Information' लिंक पर उपलब्ध है।

सूचना का अधिकार अधिनियम-2005
(सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा (6)
(1) के अंतर्गत जानकारी प्राप्त करने हेतु
आवेदन पत्र का प्रारूप)
1. आवेदक का नाम.....................................................................................................
2. पूरा पता#ई-मेल#फैक्स जिस पर जानकारी प्रेषित की जाना है।....................................
3. दूरभाष क्रमांक..........................................................................
4. आवेदन देने का दिनांक...........................................................
5. कार्यालय का नाम.....................................................................
6. चाही गई जानकारी का विवरण.................................................
7. क्या चाहते है नकल#निरीक्षण#रिकार्ड निरीक्षण#रिकार्ड की प्रमाणित प्रति#प्रमाणित नमूना
8. आवेदक के साथ अदा किये जाने वाले प्रोसेस फी-रुपये 10 नगद#स्टॉम्प (वीपीएल सूची के सदस्य को देय नहीं) रसीद क्र...........................एवं दिनांक................................
9. क्या आवेदक गरीबी की रेखा के नीचे है अथवा नहीं- हां#नहीं यदि हां तो वी.पी.एल. सूची का अनुक्रमांक।
हस्ताक्षर
(आवेदनकर्ता)
टीप :- यदि आवेदक द्वारा डाक से आवेदन प्रेषित किया जाता है तो आवेदन पत्र पर रुपये 10 का नॉन ज्यूडीशियल स्टाम्प चस्पा करते हुए स्वयं का पता अंकित करते हुए आवश्यक राशि का डाक टिकिट लगा लिफाफा संलग्न प्रेषित करें।
पावती
1. आवेदन प्राप्त होने का दिनांक..................................................................
2. आवेदनकर्ता को वांछित जानकारी प्राप्त करने के संबंध में अग्रिम कार्यवाही हेतु उपस्थित होने का दिनांक
3. संबंधित शाखा#अधिकारी जहां से जानकारी उपलब्ध होगी........... (लोक सूचना अधिकारी#सहायक लोक सूचना अधिकारी द्वारा प्राधिकृत)

प्राप्तकर्ता के हस्ताक्षर

पदनाम (रबर सील)

पदाधिकारियों को नियुक्ति पत्र जारी होगें

 आप सभी पदाधिकारियों को नियुक्ति पत्र सहित परिचयपत्र भी जारी होगें, वेब पोर्टल में भी सभी जानकारी, सूची मिलेगी.
सभी साथियों से पुन:  निवेदन है कि वे आपना सम्पूर्ण वायोडाटा दोंनों ईमेल पर स्मार्ट फोटो के साथ भेज देवें.

timesofcrime@gmail.com, chishtimahmood786@gmail.com


आरटीआई एक्टिविस्ट्स फोरम इंडिया यूनिट मध्यप्रदेश में हर सम्भाग और जिला में इकाइयों का गठन किया जाना है। गैर राजनैतिक साथी आमन्त्रित हैं। प्लीज हमें संपर्क कीजिये।

विनय जी. डेविड
प्रदेश महासचिव ( म.प्र.)
+919893221036
RTI ACTIVISTS FORUM M.P.
राष्ट्रीय स्तरीय फोरम (संगठन)

क्या है सूचना का अधिकार

क्या है सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकार अधिनियम भारत की संसद द्वारा पारित एक कानून है, जो 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ. यह कानून भारत के सभी नागरिकों को सरकारी फाइलों/रिकॉडर्‌‌स में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार देता है. जम्मू एवं कश्मीर को छोड़ कर भारत के सभी भागों में यह अधिनियम लागू है. सरकार के संचालन और अधिकारियों/कर्मचारियों के वेतन के मद में खर्च होने वाली रकम का प्रबंध भी हमारे-आपके द्वारा दिए गए करों से ही किया जाता है. यहां तक कि एक रिक्शा चलाने वाला भी जब बाज़ार से कुछ खरीदता है तो वह बिक्री कर, उत्पाद शुल्क इत्यादि के रूप में टैक्स देता है. इसलिए हम सभी को यह जानने का अधिकार है कि उस धन को किस प्रकार खर्च किया जा रहा है. यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है.

किससे और क्या सूचना मांग सकते हैं
सभी इकाइयों/विभागों, जो संविधान या अन्य कानूनों या किसी सरकारी अधिसूचना के अधीन बने हैं अथवा सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्तपोषित किए जाते हों, वहां से संबंधित सूचना मांगी जा सकती है.

सरकार से कोई भी सूचना मांग सकते हैं.
सरकारी निर्णय की प्रति ले सकते हैं.
सरकारी दस्तावेजों का निरीक्षण कर सकते हैं.
सरकारी कार्य का निरीक्षण कर सकते हैं.
सरकारी कार्य के पदार्थों के नमूने ले सकते हैं
किससे मिलेगी सूचना और कितना आवेदन शुल्क
इस कानून के तहत प्रत्येक सरकारी विभाग में जन/लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) के पद का प्रावधान है. आरटीआई आवेदन इनके पास जमा करना होता है. आवेदन के साथ केंद्र सरकार के विभागों के लिए 10 रुपये का आवेदन शुल्क देना पड़ता है. हालांकि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग शुल्क निर्धारित हैं. सूचना पाने के लिए 2 रुपये प्रति सूचना पृष्ठ केंद्र सरकार के विभागों के लिए देने पड़ते हैं. यह शुल्क विभिन्न राज्यों के लिए अलग-अलग है. आवेदन शुल्क नकद, डीडी, बैंकर चेक या पोस्टल आर्डर के माध्यम से जमा किया जा सकता है. कुछ राज्यों में आप कोर्ट फीस टिकटें खरीद सकते हैं और अपनी अर्ज़ी पर चिपका सकते हैं. ऐसा करने पर आपका शुल्क जमा माना जाएगा. आप तब अपनी अर्ज़ी स्वयं या डाक से जमा करा सकते हैं.
आवेदन का प्रारूप क्या हो
केंद्र सरकार के विभागों के लिए कोई निर्धारित प्रारूप नहीं है. आप एक सादे कागज़ पर एक सामान्य अर्ज़ी की तरह ही आवेदन बना सकते हैं और इसे पीआईओ के पास स्वयं या डाक द्वारा जमा कर सकते हैं. (अपने आवेदन की एक प्रति अपने पास निजी संदर्भ के लिए अवश्य रखें)

सूचना प्राप्ति की समय सीमा

पीआईओ को आवेदन देने के 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए. यदि आवेदन सहायक पीआईओ को दिया गया है तो सूचना 35 दिनों के भीतर मिल जानी चाहिए.

सूचना न मिलने पर क्या करे
यदि सूचना न मिले या प्राप्त सूचना से आप संतुष्ट न हों तो अपीलीय अधिकारी के पास सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 19(1) के तहत एक अपील दायर की जा सकती है. हर विभाग में प्रथम अपीलीय अधिकारी होता है. सूचना प्राप्ति के 30 दिनों और आरटीआई अर्जी दाखिल करने के 60 दिनों के भीतर आप प्रथम अपील दायर कर सकते हैं.

द्वितीय अपील क्या है?
द्वितीय अपील आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने का अंतिम विकल्प है. द्वितीय अपील सूचना आयोग के पास दायर की जा सकती है. केंद्र सरकार के विभागों के विरुद्ध केंद्रीय सूचना आयोग है और राज्य सरकार के विभागों के विरुद्ध राज्य सूचना आयोग. प्रथम अपील के निष्पादन के 90 दिनों के भीतर या उस तारीख के 90 दिनों के भीतर कि जब तक प्रथम अपील निष्पादित होनी थी, द्वितीय अपील दायर की जा सकती है. अगर राज्य सूचना आयोग में जाने पर भी सूचना नहीं मिले तो एक और स्मरणपत्र राज्य सूचना आयोग में भेज सकते हैं. यदि फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती है तो आप इस मामले को लेकर हाईकोर्ट जा सकते हैं.

सवाल पूछो, ज़िंदगी बदलो

सूचना कौन देगा
प्रत्येक सरकारी विभाग में जन सूचना अधिकारी (पीआईओ - PIO ) का पद होता है. आपको अपनी अर्जी उसके पास दाख़िल करनी होगी. यह उसका उत्तरदायित्व है कि वह उस विभाग के विभिन्न भागों से आप द्वारा मांगी गई जानकारी इकट्ठा करे और आपको प्रदान करे. इसके अलावा कई अधिकारियों को सहायक जन सूचना अधिकारी के पद पर नियुक्त किया जाता है. उनका कार्य जनता से आरटीआई आवेदन लेना और पीआईओ के पास भेजना है.

आरटीआई आवेदन कहां जमा करें
आप अपनी अर्जी-आवेदन पीआईओ या एपीआईओ के पास जमा कर सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में 629 डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है. मतलब यह कि आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई काउंटर पर अपना आरटीआई आवेदन और शुल्क जमा करा सकते हैं. वहां आपको एक रसीद भी मिलेगी. यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वह उसे संबंधित पीआईओ के पास भेजे.

यदि पीआईओ या संबंधित विभाग आरटीआई आवेदन स्वीकार न करने पर
ऐसी स्थिति में आप अपना आवेदन डाक द्वारा भेज सकते हैं. इसकी औपचारिक शिक़ायत संबंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद 18 के तहत करें. सूचना आयुक्त को उस अधिकारी पर 25,000 रुपये का अर्थदंड लगाने का अधिकार है, जिसने आवेदन लेने से मना किया था.

पीआईओ या एपीआईओ का पता न चलने पर
यदि पीआईओ या एपीआईओ का पता लगाने में कठिनाई होती है तो आप आवेदन विभागाध्यक्ष को भेज सकते हैं. विभागाध्यक्ष को वह अर्जी संबंधित पीआईओ के पास भेजनी होगी.

अगर पीआईओ आवेदन न लें
पीआईओ आरटीआई आवेदन लेने से किसी भी परिस्थिति में मना नहीं कर सकता. भले ही वह सूचना उसके विभाग/कार्यक्षेत्र में न आती हो. उसे अर्जी स्वीकार करनी होगी. यदि आवेदन-अर्जी उस पीआईओ से संबंधित न हो तो वह उसे उपायुक्त पीआईओ के पास पांच दिनों के भीतर अनुच्छेद 6(3) के तहत भेज सकता है.
क्या सरकारी दस्तावेज़ गोपनीयता क़ानून 1923 सूचना के अधिकार में बाधा है नहीं. सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अनुच्छेद 22 के अनुसार सूचना का अधिकार क़ानून सभी मौजूदा क़ानूनों का स्थान ले लेगा.

अगर पीआईओ सूचना न दें
एक पीआईओ सूचना देने से मना उन 11 विषयों के लिए कर सकता है, जो सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद आठ में दिए गए हैं. इनमें विदेशी सरकारों से प्राप्त गोपनीय सूचना, देश की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों की दृष्टि से हानिकारक सूचना, विधायिका के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाली सूचनाएं आदि. सूचना का अधिकार अधिनियम की दूसरी अनुसूची में उन 18 अभिकरणों की सूची दी गई है, जिन पर यह लागू नहीं होता. हालांकि उन्हें भी वे सूचनाएं देनी होंगी, जो भ्रष्टाचार के आरोपों और मानवाधिकारों के उल्लंघन से जुड़ी हों.

कहां कितना आरटीआई शुल्क

प्रथम अपील/द्वितीय अपील की कोई फीस नहीं है. हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने फीस का प्रावधान किया है. विभिन्न राज्यों में सूचना शुल्क/अपील शुल्क का प्रारूप अलग-अलग है.कहीं आवेदन के लिए शुल्क 10 रुपये है तो कहीं 50 रुपये. इसी तरह दस्तावेजों की फोटोकॉपी के लिए कहीं 2 रुपये तो कहीं 5 रुपये लिए जाते हैं.

क्या फाइल नोटिंग मिलता है
फाइलों की टिप्पणियां (फाइल नोटिंग) सरकारी फाइल का अभिन्न हिस्सा हैं और इस अधिनियम के तहत सार्वजनिक की जा सकती हैं. केंद्रीय सूचना आयोग ने 31 जनवरी 2006 के अपने एक आदेश में यह स्पष्ट कर दिया है.

सूचना क्यों चाहिए, क्या उसका कारण बताना होगा

बिल्कुल नहीं. कोई कारण या अन्य सूचना केवल संपर्क विवरण (नाम, पता, फोन नंबर) के अतिरिक्त देने की ज़रूरत नहीं है. सूचना क़ानून स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से संपर्क विवरण के अतिरिक्त कुछ नहीं पूछा जाएगा.

कैसे करे सूचना के लिए आवदेन एक उदाहरण से समझे
यह क़ानून कैसे मेरे कार्य पूरे होने में मेरी सहायता करता है? कोई अधिकारी क्यों अब तक आपके रुके काम को, जो वह पहले नहीं कर रहा था, करने के लिए मजबूर होता है और कैसे यह क़ानून आपके काम को आसानी से पूरा करवाता है इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं.

एक आवेदक ने राशन कार्ड बनवाने के लिए आवेदन किया. उसे राशन कार्ड नहीं दिया जा रहा था. लेकिन जब उसने आरटीआई के तहत आवेदन दिया. आवेदन डालते ही, उसे एक सप्ताह के भीतर राशन कार्ड दे दिया गया. आवेदक ने निम्न सवाल पूछे थे:

1. मैंने एक डुप्लीकेट राशन कार्ड के लिए 10 नवंबर 2009 को अर्जी दी थी. कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक प्रगति रिपोर्ट बताएं अर्थात मेरी अर्जी किस अधिकारी के पास कब पहुंची, उस अधिकारी के पास यह कितने समय रही और उसने उतने समय तक मेरी अर्जी पर क्या कार्रवाई की?
2. नियमों के अनुसार, मेरा कार्ड कितने दिनों के भीतर बन जाना चाहिए था. अब तीन माह से अधिक का समय हो गया है. कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया?
3. इन अधिकारियों के विरुद्ध अपना कार्य न करने व जनता के शोषण के लिए क्या कार्रवाई की जाएगी? वह कार्रवाई कब तक की जाएगी?
4. अब मुझे कब तक अपना कार्ड मिल जाएगा?
आमतौर पर पहले ऐसे आवेदन कूड़ेदान में फेंक दिए जाते थे. लेकिन सूचना क़ानून के तहत दिए गए आवेदन के संबंध में यह क़ानून कहता है कि सरकार को 30 दिनों में जवाब देना होगा. यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, उनके वेतन में कटौती की जा सकती है. ज़ाहिर है, ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना अधिकारियों के लिए आसान नहीं होगा.

पहला प्रश्न है : कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं.
कोई उन्नति हुई ही नहीं है. लेकिन सरकारी अधिकारी यह इन शब्दों में लिख ही नहीं सकते कि उन्होंने कई महीनों से कोई कार्रवाई नहीं की है. वरन यह काग़ज़ पर ग़लती स्वीकारने जैसा होगा.

अगला प्रश्न है : कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया.
यदि सरकार उन अधिकारियों के नाम व पद बताती है, तो उनका उत्तरदायित्व निर्धारित हो जाता है. एक अधिकारी अपने विरुद्ध इस प्रकार कोई उत्तरदायित्व निर्धारित होने के प्रति का़फी सतर्क होता है. इस प्रकार, जब कोई इस तरह अपनी अर्जी देता है, उसका रुका कार्य संपन्न हो जाता है.

घूस को मारिए घूंसा
कैसे यह क़ानून आम आदमी की रोज़मर्रा की समस्याओं (सरकारी दफ़्तरों से संबंधित) का समाधान निकाल सकता है. वो भी, बिना रिश्वत दिए. बिना जी-हुजूरी किए. आपको बस अपनी समस्याओं के बारे में संबंधित विभाग से सवाल पूछना है. जैसे ही आपका सवाल संबंधित विभाग तक पहुंचेगा वैसे ही संबंधित अधिकारी पर क़ानूनी तौर पर यह ज़िम्मेवारी आ जाएगी कि वो आपके सवालों का जवाब दे. ज़ाहिर है, अगर उस अधिकारी ने बेवजह आपके काम को लटकाया है तो वह आपके सवालों का जवाब भला कैसे देगा.

आप अपना आरटीआई आवेदन (जिसमें आपकी समस्या से जुड़े सवाल होंगे) संबंधित सरकारी विभाग के लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) के पास स्वयं जा कर या डाक के द्वारा जमा करा सकते हैं. आरटीआई क़ानून के मुताबिक़ प्रत्येक सरकारी विभाग में एक लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करना आवश्यक है. यह ज़रूरी नहीं है कि आपको उस पीआईओ का नाम मालूम हो. यदि आप प्रखंड स्तर के किसी समस्या के बारे में सवाल पूछना चाहते है तो आप क्षेत्र के बीडीओ से संपर्क कर सकते हैं. केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों के पते जानने के लिए आप इंटरनेट की भी मदद ले सकते है. और, हां एक बच्चा भी आरटीआई क़ानून के तहत आरटीआई आवेदन दाख़िल कर सकता है.

सूचना ना देने पर अधिकारी को सजा 

स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार कोई क़ानून किसी अधिकारी की अकर्मण्यता/लापरवाही के प्रति जवाबदेही तय करता है और इस क़ानून में आर्थिक दंड का भी प्रावधान है. यदि संबंधित अधिकारी समय पर सूचना उपलब्ध नहीं कराता है तो उस पर 250 रु. प्रतिदिन के हिसाब से सूचना आयुक्त द्वारा जुर्माना लगाया जा सकता है. यदि दी गई सूचना ग़लत है तो अधिकतम 25000 रु. तक का भी जुर्माना लगाया जा सकता है. जुर्माना आपके आवेदन को ग़लत कारणों से नकारने या ग़लत सूचना देने पर भी लगाया जा सकता है. यह जुर्माना उस अधिकारी के निजी वेतन से काटा जाता है.
सवाल : क्या पीआईओ पर लगे जुर्माने की राशि आवेदक को दी जाती है?
जवाब : नहीं, जुर्माने की राशि सरकारी खजाने में जमा हो जाती है. हालांकि अनुच्छेद 19 के तहत, आवेदक मुआवज़ा मांग सकता है.

आरटीआई के इस्तेमाल में समझदारी दिखाएं

कई बार आरटीआई के इस्तेमाल के बाद आवेदक को परेशान किया किया जाता है या झूठे मुक़दमे में फंसाकर उनका मानसिक और आर्थिक शोषण किया किया जाता है . यह एक गंभीर मामला है और आरटीआई क़ानून के अस्तित्व में आने के तुरंत बाद से ही इस तरह की घटनाएं सामने आती रही हैं. आवेदकों को धमकियां दी गईं, जेल भेजा गया. यहां तक कि कई आरटीआई कार्यकर्ताओं पर कातिलाना हमले भी हुए. झारखंड के ललित मेहता, पुणे के सतीश शेट्टी जैसे समर्पित आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या तक कर दी गई.

इन सब बातों से घबराने की ज़रूरत नहीं है. हमें इस क़ानून का इस्तेमाल इस तरह करना होगा कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. मतलब अति उत्साह के बजाय थोड़ी समझदारी दिखानी होगी. ख़ासकर ऐसे मामलों में जो जनहित से जुड़े हों और जिस सूचना के सार्वजनिक होने से ताक़तवर लोगों का पर्दाफाश होना तय हो, क्योंकि सफेदपोश ताक़तवर लोग ख़ुद को सुरक्षित बनाए रखने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. वे साम, दाम, दंड और भेद कोई भी नीति अपना सकते हैं. यहीं पर एक आरटीआई आवेदक को ज़्यादा सतर्कता और समझदारी दिखाने की आवश्यकता है. उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि आपको एक ऐसे मामले की जानकारी है, जिसका सार्वजनिक होना ज़रूरी है, लेकिन इससे आपकी जान को ख़तरा हो सकता है. ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे? हमारी समझ और सलाह के मुताबिक़, आपको ख़ुद आरटीआई आवेदन देने के बजाय किसी और से आवेदन दिलवाना चाहिए. ख़ासकर उस ज़िले से बाहर के किसी व्यक्ति की ओर से. आप यह कोशिश भी कर सकते हैं कि अगर आपके कोई मित्र राज्य से बाहर रहते हों तो आप उनसे भी उस मामले पर आरटीआई आवेदन डलवा सकते हैं. इससे होगा यह कि जो लोग आपको धमका सकते हैं, वे एक साथ कई लोगों या अन्य राज्य में रहने वाले आवेदक को नहीं धमका पाएंगे. आप चाहें तो यह भी कर सकते हैं कि एक मामले में सैकड़ों लोगों से आवेदन डलवा दें. इससे दबाव काफी बढ़ जाएगा. यदि आपका स्वयं का कोई मामला हो तो भी कोशिश करें कि एक से ज़्यादा लोग आपके मामले में आरटीआई आवेदन डालें. साथ ही आप अपने क्षेत्र में काम कर रही किसी ग़ैर सरकारी संस्था की भी मदद ले सकते हैं.

सवाल - जवाब

क्या फाइल नोटिंग का सार्वजनिक होना अधिकारियों को ईमानदार सलाह देने से रोकेगा?
नहीं, यह आशंका ग़लत है. इसके उलट, हर अधिकारी को अब यह पता होगा कि जो कुछ भी वह लिखता है वह जन- समीक्षा का विषय हो सकता है. यह उस पर उत्तम जनहित में लिखने का दबाव बनाएगा. कुछ ईमानदार नौकरशाहों ने अलग से स्वीकार किया है कि आरटीआई उनके राजनीतिक व अन्य प्रभावों को दरकिनार करने में बहुत प्रभावी रहा है. अब अधिकारी सीधे तौर स्वीकार करते हैं कि यदि उन्होंने कुछ ग़लत किया तो उनका पर्दाफाश हो जाएगा. इसलिए, अधिकारियों ने इस बात पर जोर देना शुरू कर दिया है कि वरिष्ठ अधिकारी भी उन्हें लिखित में निर्देश दें.

क्या बहुत लंबी-चौड़ी सूचना मांगने वाले आवेदन को ख़ारिज किया जाना चाहिए?
यदि कोई आवेदक ऐसी जानकारी चाहता है जो एक लाख पृष्ठों की हो तो वह ऐसा तभी करेगा जब सचमुच उसे इसकी ज़रूरत होगी क्योंकि उसके लिए दो लाख रुपयों का भुगतान करना होगा. यह अपने आप में ही हतोत्साहित करने वाला उपाय है. यदि अर्ज़ी इस आधार पर रद्द कर दी गयी, तो प्रार्थी इसे तोड़कर प्रत्येक अर्ज़ी में 100 पृष्ठ मांगते हुए 1000 अर्जियां बना लेगा, जिससे किसी का भी लाभ नहीं होगा. इसलिए, इस कारण अर्जियां रद्द नहीं होनी चाहिए कि लोग ऐसे मुद्दों से जुड़ी सूचना मांग रहे हैं जो सीधे सीधे उनसे जुड़ी हुई नहीं हैं. उन्हें सरकार के अन्य मामलों के बारे में प्रश्न पूछने की छूट नहीं दी जानी चाहिए, पूर्णतः ग़लत है. आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे ख़र्च हो रहा है और कैसे उनकी सरकार चल रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है. भले ही वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों. इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति ऐसी कोई भी सूचना मांग सकता है जो तमिलनाडु से संबंधित हो.

सरकारी रेकॉर्ड्स सही रूप में व्यवस्थित नहीं हैं.
आरटीआई की वजह से सरकारी व्यवस्था पर अब रेकॉर्ड्स सही आकार और स्वरूप में रखने का दवाब बनेगा. अन्यथा, अधिकारी को आरटीआई क़ानून के तहत दंड भुगतना होगा.

प्रथम अपील कब और कैसे करें

आपने सूचना पाने के लिए किसी सरकारी विभाग में आवेदन किया है, 30 दिन बीत जाने के बाद भी आपको सूचना नहीं मिली या मिली भी तो ग़लत और आधी-अधूरी अथवा भ्रामक. या फिर सूचना का अधिकार क़ानून की धारा 8 के प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर आपको सूचना देने से मना कर दिया गया. यह कहा गया कि फलां सूचना दिए जाने से किसी के विशेषाधिकार का हनन होता है या फलां सूचना तीसरे पक्ष से जुड़ी है इत्यादि. अब आप ऐसी स्थिति में क्या करेंगे? ज़ाहिर है, चुपचाप तो बैठा नहीं जा सकता. इसलिए यह ज़रूरी है कि आप सूचना का अधिकार क़ानून के तहत ऐसे मामलों में प्रथम अपील करें. जब आप आवेदन जमा करते हैं तो उसके 30 दिनों बाद, लेकिन 60 दिनों के अंदर लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ अधिकारी, जो सूचना क़ानून के तहत प्रथम अपीलीय अधिकारी होता है, के यहां अपील करें. यदि आप द्वारा अपील करने के बाद भी कोई सूचना या संतोषजनक सूचना नहीं मिलती है या आपकी प्रथम अपील पर कोई कार्रवाई नहीं होती है तो आप दूसरी अपील कर सकते हैं. दूसरी अपील के लिए आपको राज्य सूचना आयोग या केंद्रीय सूचना आयोग में जाना होगा. फिलहाल इस अंक में हम स़िर्फ प्रथम अपील के बारे में ही बात कर रहे हैं. हम प्रथम अपील का एक प्रारूप भी प्रकाशित कर रहे हैं. अगले अंक में हम आपकी सुविधा के लिए द्वितीय अपील का प्रारूप भी प्रकाशित करेंगे. प्रथम अपील के लिए आमतौर पर कोई फीस निर्धारित नहीं है. हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने अपने यहां प्रथम अपील के लिए भी शुल्क निर्धारित कर रखा है. प्रथम अपील के लिए कोई निश्चित प्रारूप (फॉर्म) नहीं होता है. आप चाहें तो एक सादे काग़ज़ पर भी लिखकर प्रथम अपील तैयार कर सकते हैं. हालांकि इस मामले में भी कुछ राज्य सरकारों ने प्रथम अपील के लिए एक ख़ास प्रारूप तैयार कर रखा है. प्रथम अपील आप डाक द्वारा या व्यक्तिगत रूप से संबंधित कार्यालय में जाकर जमा करा सकते हैं. प्रथम अपील के साथ आरटीआई आवेदन, लोक सूचना अधिकारी द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना (यदि उपलब्ध कराई गई है तो) एवं आरटीआई आवेदन के साथ दिए गए शुल्क की रसीद आदि की फोटोकॉपी लगाना न भूलें. इस क़ानून के प्रावधानों के अनुसार, यदि लोक सूचना अधिकारी आपके द्वारा मांगी गई सूचना 30 दिनों के भीतर उपलब्ध नहीं कराता है तो आप प्रथम अपील में सारी सूचनाएं नि:शुल्क उपलब्ध कराने के लिए भी कह सकते हैं. इस क़ानून में यह एक बहुत महत्वपूर्ण प्रावधान है. भले ही सूचना हज़ार पन्नों की क्यों न हो. हम उम्मीद करते हैं कि आप इस अंक में प्रकाशित प्रथम अपील के प्रारूप का ज़रूर इस्तेमाल करेंगे और अन्य लोगों को भी इस संबंध में जागरूक करेंगे.

आरटीआई की दूसरी अपील कब करें

आरटीआई अधिनियम सभी नागरिकों को लोक प्राधिकरण द्वारा धारित सूचना की अभिगम्यता का अधिकार प्रदान करता है. यदि आपको किसी सूचना की अभिगम्यता प्रदान करने से मना किया गया हो तो आप केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के समक्ष अपील/ शिकायत दायर कर सकते हैं.
आरटीआई की दूसरी अपील कब करें

दूसरी अपील कब दर्ज करें

19 (1) कोई व्यक्ति, जिसे उपधारा (1) अथवा धारा 7 की उपधारा (3) के खंड (क) के तहत निर्दिष्ट समय के अंदर निर्णय प्राप्त नहीं होता है अथवा वह केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी के निर्णय से पीड़ित है, जैसा भी मामला हो, वह उक्त अवधि समाप्त होने के 30 दिनों के अंदर अथवा निर्णय प्राप्त होने के 30 दिनों के अंदर उस अधिकारी के पास एक अपील दर्ज करा सकता है, जो प्रत्येक लोक प्राधिकरण में केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ स्तर का है, जैसा भी मामला हो:

1. बशर्ते उक्त अधिकारी 30 दिन की अवधि समाप्त होने के बाद अपील स्वीकार कर लेता है. यदि वह इसके प्रति संतुष्ट है कि अपीलकर्ता को समय पर अपील करने से रोकने का पर्याप्त कारण है.

19 (2): जब केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी, जैसा भी मामला हो, द्वारा धारा 11 के तहत तीसरे पक्ष की सूचना का प्रकटन किया जाता है, तब संबंधित तीसरा पक्ष आदेश की तिथि के 30 दिनों के अंदर अपील कर सकता है.

19 (3) उपधारा 1 के तहत निर्णय के विरुद्ध एक दूसरी अपील तिथि के 90 दिनों के अंदर की जाएगी, जब निर्णय किया गया है अथवा इसे केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग में वास्तविक रूप से प्राप्त किया गया है:

1. बशर्ते केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, 90 दिन की अवधि समाप्त होने के बाद अपील स्वीकार कर सकता है, यदि वह इसके प्रति संतुष्ट हो कि अपीलकर्ता को समय पर अपील न कर पाने के लिए पर्याप्त कारण हैं.

19 (4): यदि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी का निर्णय, जैसा कि मामला हो, दिया जाता है और इसके विरुद्ध तीसरे पक्ष की सूचना से संबंधित एक अपील की जाती है तो केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, उस तीसरे पक्ष को सुनने का एक पर्याप्त अवसर देगा.

19 (7): केद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग का निर्णय, जैसा भी मामला हो, मानने के लिए बाध्य होगा.

19 (8): अपने निर्णय में केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, को निम्नलिखित का अधिकार होगा.

(क) लोक प्राधिकरण द्वारा वे क़दम उठाए जाएं, जो इस अधिनियम के प्रावधानों के साथ पालन को सुनिश्चित करें, जिसमें शामिल हैं
सूचना तक पहुंच प्रदान करने द्वारा, एक विशेष रूप में, यदि ऐसा अनुरोध किया गया है;
केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति द्वारा, जैसा भी मामला हो;
सूचना की कुछ श्रेणियों या किसी विशिष्ट सूचना के प्रकाशन द्वारा;
अभिलेखों के रखरखाव, प्रबंधन और विनाश के संदर्भ में प्रथाओं में अनिवार्य बदलावों द्वारा;
अपने अधिकारियों को सूचना के अधिकार पर प्रशिक्षण के प्रावधान बढ़ाकर;
धारा 4 की उपधारा (1) के खंड (ख) का पालन करते हुए वार्षिक प्रतिवेदन प्रदान करना;

(ख) लोक प्राधिकरण द्वारा किसी क्षति या अन्य उठाई गई हानि के लिए शिकायतकर्ता को मुआवज़ा देना;

(ग) अधिनियम के तहत प्रदान की गई शक्तियों को अधिरोपित करना;

(घ) आवेदन अस्वीकार करना.

19 (9): केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, अपील के अधिकार सहित अपने निर्णय की सूचना शिकायतकर्ता और लोक प्राधिकरण को देगा.

19 (10): केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, उक्त प्रक्रिया में निर्धारित विधि द्वारा अपील का निर्णय देगा.

ऑनलाइन करें अपील या शिकायत

क्या लोक सूचना अधिकारी ने आपको जवाब नहीं दिया या दिया भी तो ग़लत और आधा-अधूरा? क्या प्रथम अपीलीय अधिकारी ने भी आपकी बात नहीं सुनी? ज़ाहिर है, अब आप प्रथम अपील या शिकायत करने की सोच रहे होंगे. अगर मामला केंद्रीय विभाग से जुड़ा हो तो इसके लिए आपको केंद्रीय सूचना आयोग आना पड़ेगा. आप अगर बिहार, उत्तर प्रदेश या देश के अन्य किसी दूरदराज के इलाक़े के रहने वाले हैं तो बार-बार दिल्ली आना आपके लिए मुश्किल भरा काम हो सकता है. लेकिन अब आपको द्वितीय अपील या शिकायत दर्ज कराने के लिए केंद्रीय सूचना आयोग के दफ्तर के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे. अब आप सीधे सीआईसी में ऑनलाइन द्वितीय अपील या शिकायत कर सकते हैं. सीआईसी में शिकायत या द्वितीय अपील दर्ज कराने के लिए हीं http:rti.india.gov.in में दिया गया फार्म भरकर जमा करना है. क्लिक करते ही आपकी शिकायत या अपील दर्ज हो जाती है.

दरअसल यह व्यवस्था भारत सरकार की ई-गवर्नेंस योजना का एक हिस्सा है. अब वेबसाइट के माध्यम से केंद्रीय सूचना आयोग में शिकायत या द्वितीय अपील भी दर्ज की जा सकती है. इतना ही नहीं, आपकी अपील या शिकायत की वर्तमान स्थिति क्या है, उस पर क्या कार्रवाई की गई है, यह जानकारी भी आप घर बैठे ही पा सकते हैं. सीआईसी में द्वितीय अपील दर्ज कराने के लिए वेबसाइट में प्रोविजनल संख्या पूछी जाती है. वेबसाइट पर जाकर आप सीआईसी के निर्णय, वाद सूची, अपनी अपील या शिकायत की स्थिति भी जांच सकते हैं. इस पहल को सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम माना जा रहा है. सूचना का अधिकार क़ानून लागू होने के बाद से लगातार यह मांग की जा रही थी कि आरटीआई आवेदन एवं अपील ऑनलाइन करने की व्यवस्था की जाए, जिससे सूचना का अधिकार आसानी से लोगों तक अपनी पहुंच बना सके और आवेदक को सूचना प्राप्त करने में ज़्यादा द़िक्क़त न उठानी पड़े.

आरटीआई ने दिलाई आज़ादी
मुंगेर (बिहार) से अधिवक्ता एवं आरटीआई कार्यकर्ता ओम प्रकाश पोद्दार ने हमें सूचित किया है कि सूचना का अधिकार क़ानून की बदौलत बिहार में एक ऐसा काम हुआ है, जिसने सूचना क़ानून की ताक़त से आम आदमी को तो परिचित कराया ही, साथ में राज्य की अ़फसरशाही को भी सबक सिखाने का काम किया. दरअसल राज्य की अलग-अलग जेलों में आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे 106 क़ैदियों की सज़ा पूरी तो हो चुकी थी, फिर भी उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा था. यह जानकारी सूचना क़ानून के तहत ही निकल कर आई थी. इसके बाद पोद्दार ने इस मामले में एक लोकहित याचिका दायर की. मार्च 2010 में हाईकोर्ट के आदेश पर ससमय परिहार परिषद की बैठक शुरू हुई, जिसमें उन क़ैदियों की मुक्ति का मार्ग खुला, जो अपनी सज़ा पूरी करने के बावजूद रिहा नहीं हो पा रहे थे..

कब करें आयोग में शिकायत

दरअसल, अपील और शिक़ायत में एक बुनियादी फर्क़ है. कई बार ऐसा होता है कि आपने अपने आरटीआई आवेदन में जो सवाल पूछा है, उसका जवाब आपको ग़लत दे दिया जाता है और आपको पूर्ण विश्वास है कि जो जवाब दिया गया है वह ग़लत, अपूर्ण या भ्रामक है. इसके अलावा, आप किसी सरकारी महकमे में आरटीआई आवेदन जमा करने जाते हैं और पता चलता है कि वहां तो लोक सूचना अधिकारी ही नियुक्त नहीं किया गया है. या फिर आपसे ग़लत फीस वसूली जाती है. तो, ऐसे मामलों में हम सीधे राज्य सूचना आयोग या केंद्रीय सूचना आयोग में शिक़ायत कर सकते है. ऐसे मामलों में अपील की जगह सीधे शिक़ायत करना ही समाधान है. आरटीआई अधिनियम सभी नागरिकों को एक लोक प्राधिकारी के पास उपलब्ध जानकारी तक पहुंच का अधिकार प्रदान करता है. यदि आपको कोई जानकारी देने से मना किया गया है तो आप केंद्रीय सूचना आयोग/राज्य सूचना आयोग, जैसा मामला हो, में अपनी शिक़ायत दर्ज करा सकते हैं.
सूचना क़ानून की धारा 18 (1) के तहत यह केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग का कर्तव्य है, जैसा भी मामला हो, कि वे एक व्यक्ति से शिक़ायत स्वीकार करें और पूछताछ करें. कई बार लोग केंद्रीय सूचना लोक अधिकारी या राज्य सूचना लोक अधिकारी के पास अपना अनुरोध जमा करने में सफल नहीं होते, जैसा भी मामला हो. इसका कारण कुछ भी हो सकता है, उक्त अधिकारी या केंद्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी या राज्य सहायक लोक सूचना अधिकारी, इस अधिनियम के तहत नियुक्त न किया गया हो, जैसा भी मामला हो, ने इस अधिनियम के तहत अग्रेषित करने के लिए कोई सूचना या अपील के लिए उनके आवेदन को स्वीकार करने से मना कर दिया हो, जिसे वह केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी या धारा 19 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट राज्य लोक सूचना अधिकारी के पास न भेजें या केंद्रीय सूचना आयोग अथवा राज्य सूचना आयोग में अग्रेषित न करें, जैसा भी मामला हो.
जिसे इस अधिनियम के तहत कोई जानकारी तक पहुंच देने से मना कर दिया गया हो. ऐसा व्यक्ति जिसे इस अधिनियम के तहत निर्दिष्ट समय सीमा के अंदर सूचना के लिए अनुरोध या सूचना तक पहुंच के अनुरोध का उत्तर नहीं दिया गया हो.
जिसे शुल्क भुगतान करने की आवश्यकता हो, जिसे वह अनुपयुक्त मानता/मानती है.
जिसे विश्वास है कि उसे इस अधिनियम के तहत अपूर्ण, भ्रामक या झूठी जानकारी दी गई है.
इस अधिनियम के तहत अभिलेख तक पहुंच प्राप्त करने या अनुरोध करने से संबंधित किसी मामले के विषय में.

जब मिले ग़लत, भ्रामक या अधूरी सूचना

द्वितीय अपील तब करते हैं, जब प्रथम अपील के बाद भी आपको संतोषजनक सूचना नहीं मिलती है. राज्य सरकार से जुड़े मामलों में यह अपील राज्य सूचना आयोग और केंद्र सरकार से जुड़े मामलों में यह अपील केंद्रीय सूचना आयोग में की जाती है. हमने आपकी सुविधा के लिए द्वितीय अपील का एक प्रारूप भी प्रकाशित किया था. हमें उम्मीद है कि आपने इसका इस्तेमाल ज़रूर किया होगा. इससे निश्चय ही फायदा होगा. इस अंक में हम सूचना का अधिकार क़ानून 2005 की धारा 18 के बारे में बात कर रहे हैं. धारा 18 के तहत शिक़ायत दर्ज कराने की व्यवस्था है. एक आवेदक के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि किन-किन परिस्थितियों में शिक़ायत दर्ज कराई जा सकती है. लोक सूचना अधिकारी यदि आवेदन लेने से इंकार करता है अथवा परेशान करता है तो इसकी शिक़ायत सीधे आयोग में की जा सकती है. सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं को अस्वीकार करने, अपूर्ण सूचना उपलब्ध कराने, भ्रामक या ग़लत सूचना देने के ख़िला़फ भी शिक़ायत दर्ज कराई जा सकती है. सूचना के लिए अधिक फीस मांगने के ख़िला़फ भी आवेदक आयोग में सीधे शिक़ायत दर्ज करा सकता है. उपरोक्त में से कोई भी स्थिति सामने आने पर आवेदक को प्रथम अपील करने की ज़रूरत नहीं होती. आवेदक चाहे तो सीधे सूचना आयोग में अपनी शिक़ायत �

आरटीआई शिकायत

आरटीआई शिकायत

आरटीआई अधिनियम सभी नागरिकों को एक लोक प्राधिकारी के पास उपलब्‍ध जानकारी तक पहुंच का अधिकार प्रदान करता है। यदि आपको किसी जानकारी देने से मना किया गया है तो आप केन्‍द्रीय सूचना आयोग में अपनी अपील / शिकायत जमा करा सकते हैं।
शिकायत कब जमा करें
इस अधिनियम के प्रावधान 18 (1) के तहत यह केन्‍द्रीय सूचना आयोग या राज्‍य सूचना आयोग का कर्तव्‍य है, जैसा भी मामला हो, कि वे एक व्‍यक्ति से शिकायत प्राप्‍त करें और पूछताछ करें।
जो केन्‍द्रीय सूचना लोक अधिकारी या राज्‍य सूचना लोक अधिकारी के पास अपना अनुरोध जमा करने में सफल नहीं होते, जैसा भी मामला हो, इसका कारण कुछ भी हो सकता है कि उक्‍त अधिकारी या केन्‍द्रीय सहायक लोक सूचना अधि‍कारी या राज्‍य सहायक लोक सूचना अधिकारी, इस अधिनियम के तहत नियुक्‍त न किया गया हो जैसा भी मामला हो, ने इस अधिनियम के तहत अग्रेषित करने के लिए कोई सूचना या अपील के लिए उसके आवेदन को स्‍वीकार करने से मना कर दिया हो जिसे वह केन्‍द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्‍य लोक सूचना अधिकारी या धारा 19 की उपधारा (1) में निर्दिष्‍ट राज्‍य लोक सूचना अधिकारी के पास न भेजे या केन्‍द्रीय सूचना आयोग अथवा राज्‍य सूचना आयोग में अग्रेषित न करें, जैसा भी मामला हो।
जिसे इस अधिनियम के तहत कोई जानकारी तक पहुंच देने से मना कर दिया गया हो। ऐसा व्‍यक्ति जिसे इस अधिनियम के तहत निर्दिष्‍ट समय सीमा के अंदर सूचना के लिए अनुरोध या सूचना तक पहुंच के अनुरोध का उत्तर नहीं दिया गया हो।
जिसे शुल्‍क भुगतान करने की आवश्‍यकता हो, जिसे वह अनुपयुक्‍त मानता / मानती है।
जिसे विश्‍वास है कि उसे इस अधिनियम के तहत अपूर्ण, भ्रामक या झूठी जानकारी दी गई है।
इस अधिनियम के तहत अभिलेख तक पहुंच प्राप्‍त करने या अनुरोध करने से संबंधित किसी मामले के विषय में।

Present by - RTI ACTIVISTS FORUM M.P.

आरटीआई की दूसरी अपील

आरटीआई की दूसरी अपील

आरटीआई अधिनियम सभी नागरिकों को लोक प्राधिकरण द्वारा धारित सूचना की अभिगम्‍यता का अधिकार प्रदान करता है। यदि आपको किसी सूचना की अभिगम्‍यता प्रदान करने से मना किया गया हो तो आप केन्‍द्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के समक्ष अपील / शिकायत दायर कर सकते हैं।
एक अपील कब दर्ज करें
19 (1) कोई व्‍यक्ति, जिसे उप धारा (1) में अथवा धारा 7 की उप धारा (3) के खण्‍ड (क) के तहत निर्दिष्‍ट समय के अंदर निर्णय प्राप्‍त नहीं होता है अथवा वह केन्‍द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्‍य लोक सूचना अधिकारी के निर्णय से पीडि़त हैं, जैसा भी मामला हो वह उक्‍त अवधि समाप्‍त होने के 30 दिनों के अंदर अथवा यह निर्णय प्राप्‍त होने के 30 दिनों के अंदर उस अधिकारी के पास एक अपील दर्ज करा सकता है जो प्रत्‍येक लोक प्राधिकरण में केन्‍द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्‍य लोक सूचना अधिकारी से वरिष्‍ठ स्‍तर का है, जैसा भी मामला हो :
बशर्ते कि उक्‍त अधिकारी द्वारा 30 दिन की अवधि समाप्‍त होने के बाद अपील स्‍वीकार कर लेता है, यदि वह इसके प्रति संतुष्‍ट है कि अपीलकर्ता को समय पर अपील करने से रोकने का पर्याप्‍त कारण है।
19 (2) जब एक अपील केन्‍द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्‍य लोक सूचना अधिकारी, जैसा भी मामला हो, द्वारा धारा 11 के तहत तीसरे पक्ष की सूचना का प्रकटन किया जाता है तब संबंधित तीसरा पक्ष आदेश की तिथि के 30 दिनों के अंदर अपील कर सकता है।
19 (3) उप धारा 1 के तहत निर्णय के विरुद्ध एक दूसरी अपील तिथि के 90 दिनों के अंदर की जाएगी जब निर्णय किया गया है अथवा इसे केन्‍द्रीय सूचना आयोग या राज्‍य सूचना आयोग में वास्‍तविक रूप से प्राप्‍त किया गया है:
बशर्ते कि केन्‍द्रीय सूचना आयोग या राज्‍य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो 90 दिन की अवधि समाप्‍त होने के बाद अपनी दायर कर सकता है, यदि उसे यह संतुष्टि है कि अपीलकर्ता को समय पर अपील न कर पाने के लिए पर्याप्‍त कारण हैं।
19 (4) यदि केन्‍द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्‍य लोक सूचना अधिकारी का निर्णय, जैसा कि मामला हो, दिया जाता है और इसके विरुद्ध तीसरे पक्ष की सूचना से संबंधित एक अपील की जाती है। तो केन्‍द्रीय सूचना आयोग या राज्‍य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, उस तीसरे पक्ष को सुनने का एक पर्याप्‍त अवसर देंगे।
19 (7) केन्‍द्रीय सूचना आयोग या राज्‍य सूचना आयोग का निर्णय, जैसा भी मामला हो, मानने के लिए बाध्‍य होगा।
19 (8) अपने निर्णय में केन्‍द्रीय सूचना आयोग या राज्‍य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, को निम्‍नलिखित का अधिकार होगा।
क) लोक प्राधिकरण द्वारा ये कदम उठाए जाएं जो इस अधिनियम के प्रावधानों के साथ पालन को सुनिश्चित करें, जिसमें शामिल हैं
सूचना तक पहुंच प्रदान करने के द्वारा, एक विशेष रूप में, यदि ऐसा अनुरोध किया गया है;
केन्‍द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्‍य लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति द्वारा, जैसा भी मामला हो;
सूचना की कुछ श्रेणियां या कुछ विशिष्‍ट सूचना के प्रकाशन द्वारा;
अभिलेखों के रखरखाव, प्रबंधन और विनाश के संदर्भ में प्रथाओं में अनिवार्य बदलावों द्वारा
अपने अधिकारियों को सूचना के अधिकार पर प्रशिक्षण के प्रावधान बढ़ाकर;
धारा 4 की उप धारा (1) के खण्‍ड (ख) का पालन करते हुए वार्षिक प्रतिवेदन प्रदान करना;
ख) लोक प्राधिकरण द्वारा किसी क्षति या अन्‍य उठाई गई हानि के लिए शिकायतकर्ता को मुआवज़ा देना;
ग) इस अधिनियम के तहत प्रदान की गई शास्तियों को अधिरोपित करना;
घ) आवेदन अस्‍वीकार करना।
19 (9) केन्‍द्रीय सूचना आयोग या राज्‍य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो अपील के अधिकार सहित अपने निर्णय की सूचना शिकायतकर्ता और लोक प्राधिकरण को देगा।
19 (10) केन्‍द्रीय सूचना आयोग या राज्‍य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो उक्‍त प्रक्रिया में निर्धारित विधि द्वारा अपील का निर्णय देगा।

By post - RTI ACTIVISTS FORUM M.P.

सूचना का अधिकार मंच भोपाल सम्भाग के अध्यक्ष अधिवक्ता साथी दीपक गौर नियुक्त

साथियों सूचना का अधिकार मंच भारत की मध्यप्रदेश के भोपाल सम्भाग की भोपाल जिला इकाई में अधिवक्ता नयन शर्मा साहब को जिलाध्यक्ष नियुक्त किया जाता है। बधाई।

साथियों सूचना का अधिकार मंच भारत में प्रांतीय संरक्षक मोहम्मद तारिक़ साहब के निर्देश पर भोपाल सम्भाग के अध्यक्ष पद के लिए जिला बार एसोसिएशन में वरिष्ठ अधिवक्ता साथी दीपक गौर साहब को नियुक्त किया जाता है। हार्दिक अभिनन्दन है।


रविवार, 31 मई 2015

आर टी आई फोरम में "गिरीश सक्सेना" आगर "जिला अध्यक्ष" नियुक्त

आर टी आई फोरम में "गिरीश सक्सेना" आगर "जिला अध्यक्ष" नियुक्त

"श्री गिरीश सक्सेना" आगर
"जिला अध्यक्ष" नियुक्त
राष्ट्रीय स्तरीय फोरम (संगठन)
RTI ACTIVISTS FORUM M.P. की आगर जिला इकाई में पत्रकार, वकील एवं आर टी आई कार्यकर्ता साथी " गिरीश सक्सेना" पिता श्री सुरेश सक्सेना, पता- प्रेमसदन आंबेडकर भवन के पास, छावनी नाका, चौराहा आगर, जिला- आगर(मॉलवा) को "आगर जिला अध्यक्ष" नियुक्त किया जाता हैं।
सम्पर्क मोबाइल- 9407428628, 96 44 206675

"गिरीश सक्सेना जी" को आगर "जिला अध्यक्ष" बनाये जाने पर हार्दिक बधाईयां...
💐💐💐💐💐
शुभकामनाओं सहित:
समस्त सदस्य एवं पदाधिकारी गण

सैयद महमूद अली चिश्ती, प्रांताध्यक्ष सूचना का अधिकार मंच भारत, शाखा: मध्यप्रदेश
+91 94250 41700

विनय जी. डेविड
प्रदेश महासचिव ( म.प्र.)
+9198932 21036
RTI ACTIVISTS FORUM M.P.
राष्ट्रीय स्तरीय फोरम (संगठन)
31/05/2015

RTI ACTIVISTS FORUM M.P. की इकाई की महत्वपूर्ण जानकारी के लिए पोर्टल बनाया गया है लिंक दिया गया है...
http://rtiforummp.blogspot.in