RTI ACTIVISTS FORUM M.P.

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शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

कालेधन को सफेद करने के अपनाये जा रहे नये-नये तरीके

अवधेश पुरोहित // TOC NEWS

भोपाल . मोदी सरकार ने मंगलवार को पाँच सौ और एक हजार रुपये के नोटों को अवैध घोषित कर दिया हो लेकिन लोगों ने अपने जुगाड़ों से नये-नये तरीके खोजना शुरू कर दिये, लोगों ने नोटों को बदलने के लिये दिये जा रहे पचास दिन के समयसीमा से जहाँ मदद मिल रही है वहीं शहरों में इन नोटों के प्रचलन बंद के दिन से ही सराफा, हवाला, जनधन और मंदिरों में दान करने जैसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं, जहाँ लोगों ने आठ नवम्बर को घोषणा होने के बाद सोने-चाँदी की बेहिसाब खरीदी कर अपने काले धन को ठिकाने लगाने का तरीका अपनाया तो वहीं इसके चलते लोगों ने सोने के अनाप-शनाप भाव से जेवर खरीदे।

यही नहीं कई संस्थानों ने अपने कर्मचारियों को अग्रिम वेतन तक का भुगतान कर अपने कालेधन को ठिकाने लगाने का तरीका अपनाया, पैसा बदलने वाले कुछ लोग गरीबी रेखा के नीचे बीपीएल के जनधन बीमा खातों के उपयोग के लिए उन्हें इस्तेमाल करने में लगे हुए हैं तो कारोबारी विभिन्न चिटफण्ड खातों की इस तरह से सरकारी रास्ते का इस्तेमाल कर रहे हैं कि जन-धन योजना के तहत खाते रखने वाले एक समूह को चिन्हित कर कारोबारियों ने अपना पैसा सभी खातों में बांटने का तरीका अपना लिया। यही नहीं तो वही लोगों ने संयुक्त परिवारों का भी सहारा लेना शुरू कर दिया जिसके तहतविभिन्न बैंक खातों में थोड़ी-थोड़ी राशि रखने से बड़ी राशि बंट जाती है

जिससे ज्यादा से ज्यादा रुपये जमा किये जाने का रास्ता लोगों ने निकाल लिया, सरकार ने भी घोषणा कर दी कि गृहणियों की कम जाँच-पड़ताल की जाएगी, इसका लाभ उठाने में भी लोग लग गए, यही नहीं कालेधन को ठिकाने लगाने के लिए लोगों ने मंदिरों का भी सहारा लेना शुरू कर दिया और अपने ५०० और एक हजार के नोटों को १०० रुपये के नोटों में बदल रहे हैं, जैसे कि खबरें सुर्खियों में रहीं उसके तहत भोपाल स्टेशन की यह खबर भी थी कि वहां की तिजोरी से रातोंरात १०० रुपए के नोट बदल गए और उनका स्थान ५०० और एक हजार के नोटों ने ले लिया और वहीं कालेधन के कारोबारी इन दिनों मंदिरों और उनके ट्रस्टों में जमा ५०० और एक हजार रुपए के नोटों को १०० रुपए में बदलने का रास्ता निकाल रहे हैं, बहुत से लोगों ने मंदिरों के प्रबंधकों को विश्वास में लेकर अपना अघोषित धन मंदिरों को दान करने का तरीका निकाला है और ऐसे अज्ञात दानदाताओं के रूप में पावती बनाने का सिलसिला भी जोरों पर चल रहा है।

इस अवैध व्यवस्था में देश से बाहर भेजने के लिए एजेंटों, बिचौलियों का इस्तेमाल भी इन दिनों जोरों पर है, तो वहीं इस तरह के कारोबारियों की निगाहें स्वयं सेवी संगठनों (एनजीओ) और सराफों को मनी लांड्रिंग का जरिया बना लिया है कई जगहों पर खुदरा दुकानदार भी नोट बदलने के केन्द्र बन गये हैं, वह पाँच सौ के नोटों के बदले चार सौ रुपए दे रहे हैं तो वहीं प्रदेश में पाँच सौ और एक हजार के नोटों के बदले २० फीसदी रुपये देने का कारोबार भी प्रचलन में आ गया है जिन लोगों के पास भारी मात्रा में ऐसे नोट हैं वह इसे खपाने के लिये नये-नये तरीके अपनाने में लगे हुए हैं

देखना अब यह है कि नरेन्द्र मोदी के इस निर्णय के बाद जहां देश में बड़े नोटों का चलन ८६ प्रतिशत है ऐसे में इनके बंद किये जाने के बाद इस रकम में से कितनी रकम वापस आती है, सरकार की निगाहें इसी पर लगी हुई है तो इन दिनों देशभर के आयकर और बिक्रीकर विभाग के अधिकारी भी सक्रिय नजर दिखाई दे रहे हैं और वह आठ नवम्बर को पाँच सौ और एक हजार रुपऐ के  नोट बंद होने की घोषणा के बाद देश और प्रदेश में चली धड़ाधड़ बिक्री वाले केन्द्रों से उनके सीसीटीवी कैमरों के फुटेज मांगे जा रहे हैं तो वहीं राज्य के राजनेता भी जिनके पास आकूत सम्पत्ति इस भाजपा शासनकाल के दौरान जमा हुई है

ऐसे राजनेताओं के साथ-साथ अधिकारियों पर भी आयकर विभाग की नजर है, तो वहीं विगत कुछ वर्षों में पति से करोड़पति बने लोगों के भी बारे में खोज-खबर ली जा रही है, सरकार की इन सब गतिविधियों को देखकर यह लग रहा है कि आने वाले समय में कई भ्रष्ट अधिकारियों के साथ-साथ कई ऐसे जनप्रतिनिधियों के बारे में भी खोज खबर ली जा रही है जिनके पास नोट गिनने की मशीने होने की पिछले दिनों खबर सुर्खियों में रही है,

सरकार की इस तरह की गतिविधियों के बीच जहां सरकार कालेधन के कारोबारियों पर निगाहें जमाये बैठी है तो वहीं इन कारोबारियों के द्वारा अपनाई जा रही नई नई नीतियों पर भी आयकर विभाग की नजर है, कुल मिलाकर इन दिनों राज्य के मंत्रालय से लेकर राजनैतिक माहौल में भी ५०० और एक हजार के नोट बंद होने के बाद खामोशी छाई हुई है और लोग चुपचाप अपने कालेधन को ठिकाने के नये-नये तरीके खोजने में लगे हैं तो वहीं ऐसे कारोबारियों की काली रकम को लगाने के लिये भी कई उनके हमदर्द भी हमदर्दी दिखाते नजर आ रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर लोग कालेधन के पुजारियों को फोन कर उन्हें काला धन निकालने का सलाह मशवरा देते दिखाई दे रहे हैं।

सुचना का अधिकार की धज्जियां उड़ाते मुख्यवन संरक्षक बिलासपुरव्रत के जनसूचना अधिकारी द्वारा

RTI News

प्रदेश सरकार एक ओर राज्य सुचना आयोग के उच्चाधिकारी की नियुक्ति अटका के रखे हैं ,वही प्रदेश में राज्य शासन के जनसूचना अधिकारी पेशी की तारीख तो दे देते लेकिन खुद उपस्थित नही रहते ।

ऐसा ही बिलासपुर मुख्यवनसंरक्षक के जनसूचना अधिकारी जायसवाल जी के द्वारा आज गैर जिम्मेदाराना कार्य किया पेशी के समय कार्यलय में ही नही थे और फोन लगाने के बाद भी जब उन्होंने फोन नही उठाया तो पेशी कर्ता ने उनके आफिस वर्क में अपना साइन कर लिख दिया की जनसूचना अधिकारी खुद अनुपस्थित है जब खबर की जानकारी के लिए मुख्यवन संरक्षक बिलासपुर व्रुत्त के अधिकारी से मिलने की कोशिश की गई लेकिन उनसे भी मुलाकात नही हो सकी ।

ऐसा पहला वाक्य नही हैं प्रदेश के जनसूचना अधिकारी पहले भी इस प्रकार के कार्य करते आये हैं लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री जी को प्रदेश के दूसरे कार्यो से फुर्सत ही नही हैं तभी तो ऐसे अधिकारियो के हौसले बुलंद हैं नही तो पेशी के समय खुद जनसूचना अधिकारी अनुपस्थित रहना अपने कर्तव्यो के प्रति गम्भीर लापरवाही है ऐसे अधकारी को तुरंत राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा तुरन्त निलंबित किया जा सकता हैं लेकिन इस प्रदेश में ऐसा कुछ भी नही होने वाला ।
*गोविन्द शर्मा (पत्रकार )*

गुरुवार, 22 सितंबर 2016

सूचना का अधिकार : 24 बार किया सूचना देने से इनकार, 2.29 लाख रुपए का दंड



RTI News

बेंगलुरु। एक सरकारी अधिकारी ने अलग-अलग मामलों में लगातार 24 बार सूचना देने से इनकार कर दिया। ऐसा करने के लिए सरकारी अधिकारी पर 2.29 लाख रुपए का दंड लगाया गया है। चौंकाने वाली बात तो ये है कि इस अधिकारी ने 1.45 लाख रुपए का भुगतान किया मगर सूचना देने से इनकार कर दिया।

अधिकारी ने नहीं दी सूचना, देता रहा आयोग को मात

सूचना के अधिकार का उल्लंघन करने के लिए कर्नाटक सूचना आयोग ने आरोपी अधिकारी डी हेमंत के खिलाफ आरटीआई एक्ट के सेक्शन 22 के अंतर्गत कार्रवाई करने का फैसला लिया है। डी हेंमत ने बार-बार अपनी चतुराई से सूचना आयोग को मात देने की कोशिश की। कनार्टक सूचना आयोग 2009 से हेमंत के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रहा है। इतने सालों में डी हेमंत एक बार भी आयोग के सामने प्रस्तुत नहीं हुआ। हेमंत की मुश्किल तब शुरू हुई जब वो बु्रहत बेंगलुरु महानगर पालिका में डेप्युटेशन पर सहायक कार्यकारी अभियंता के रूप में नियुक्त हुआ।

24 बार आरटीआई का उल्लंघन कर चुका है हेमंत

हेमंत एक जनसूचना अधिकारी होने बावजूद कई आवेदकों की ओर से मांगी गई जानकारी देने में असमर्थ रहा। इस साल 22 मार्च को जब हेमंत के खिलाफ एक और ऐसा मामला दर्ज हुआ तो राज्य सूचना आयुक्त एल कृष्णामूर्ति ने उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्णय लिया। इस बार हेमंत ने लागारे के रहने वाले टी के रेनुकप्पा को जानकारी देने से इनकार कर दिया। जब इस मामले की जांच हुई तो पता चला कि पहले भी अधिकारी सूचना के अधिकार कानून का उल्लंघन कर चुका है।

पीडब्लयूडी कोर्ट में 19 अक्टूबर को होगी सुनवाई

इस मामले में सूचना आयोग ने शहरी विकास मंत्रालय को लिखा तो पता चला कि हेमंत वापस अपने पुराने विभाग पीडब्लयूडी में जा चुका है। इस समय हेमंत एईई विभाग में काम कर रहा है। जांच के दौरान सूचना आयोग को पता चला कि सूचना के अधिकार कानून का पालन ना करने के लिए हेमंत पर 2.29 का दंड लग चुका है। इसमें से हेमंत ने करीब 1.45 रुपए का दंड भर दिया है मगर सूचना नहीं दी। इस मामले में अब सूचना आयोग ने पीडब्ल्यूडी के प्रिंसिपल सेकेट्री एल लक्ष्मीनारायन से हेमंत के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई करने को कहा है। पीडब्ल्यूडी कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 19 अक्टूबर को होगी।

रविवार, 18 सितंबर 2016

राज्य सूचना आयोग ने बदला परिवहन आयुक्त का फैसला

 Toc ( rti )  News
अपीलार्थी को पंद्रह दिवस में देना होगी नि:शुल्क जानकारी
शिवपुरी। प्रदेश में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 का सरकारी कार्यालयों में किस तरह दुरुपयोग हो रहा हैं इसका जीता जागता उदाहरण तब सामने आया जब अपीलार्थी विजय शर्मा बिंदास ने एक अपील दिनांक 7/8/15 को उपपरिवहन आयुक्त ग्वालियर में लगाई गई। जिसमें विजय शर्मा ने जुलाई 2015 को एक परिवहन आयुक्त कार्यालय ग्वालियर से जानकारी मांगी थी की परिवहन विभाग ने अप्रैल 2014 से मार्च 2015 तक स्मार्ट चिप लिमिटेड को कितना भुगतान किया है एवं इस अवधि में उक्त कंपनी के बिलों की छायाप्रति मांगी थी जिनके एवज में भुगतान किया गया है। लेकिन परिवहन उप आयुक्त ने 30 दिवस के अंदर इस कार्यालय के द्वारा अपीलार्थी को किसी भी प्रकार का पत्र नहीं दिया गया जिसके पश्चात अपीलार्थी ने अपीलीय प्रक्रिया को बढ़ाते हुए 20/8/15 को प्रथम अपीलीय अधिकारी परिवहन आयुक्त को प्रेषित की।

यहां भी परिवहन आयुक्त विभाग ने अपनी हीलाहवाली के चलते अपीलार्थी को कोई भी जानकारी दिलवाना सुनिश्चित नहीं किया जो उन्हें 45 दिवस के अंदर अपीलार्थी को प्रदान करना थी, लेकिन 45 दिवस पश्चात 7/10/15 को परिवहन आयुक्त ने पत्र क्रमांक 5017 अपीलार्थी को भेजा जिसमें लोक सूचना अधिकारी अपर परिवहन आयुक्त मप्र ने कोई जबाब नहीं दिया तब परिवहन आयुक्त के समक्ष प्रथम अपील की गयी जिस बिना सुनवाई के फैसला सुनाते हुए उपरोक्त वर्णित कारण बताते हुए जानकारी देने से इंकार कर दिया। जिसके पश्चात अपीलार्थी ने राज्य सूचना आयोग को दूसरी अपील की और तर्क दिया की मप्र शासन के राजपत्र दिनांक 05 दिसंबर 2013 के अनुसार मध्य प्रदेश शासन और स्मार्ट चिप लिमिटिड के मध्य एक बृहद सेवा अनुबंध हुआ है जिसके अनुसार ये कंपनी विभाग को जो भी सेवा उपलब्ध कराएगी उसका भुगतान जनता से वसूल किया जायेगा तो फिर उक्त भुगतान के सम्बन्ध में जानकारी जनता को प्रदान करने में संकोच क्यों और इसे वाणिज्यिक अनुबंध बताया जाना सवर्था गलत है।

जिसकी सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप के द्वारा 1/8/16 को की गई जिसमें अपीलार्थी तो उपस्थित हुआ, लेकिन जवाब प्रस्तुत करने के लिए परिवहन आयुक्त कार्यालय से कोई भी सदस्य उपस्थित नहीं हो सका। जिसके चलते सूचना आयुक्त ने अपनी नाराजगी भी जाहिर की और अपीलार्थी को पंद्रह दिवस में जानकारी उपलब्ध कराने के परिवहन आयुक्त को निर्देश दिए तथा राज्य सूचना आयोग भोपाल ने परिवहन आयुक्त ग्वालियर के उस फैसले को पलट दिया जिसमे परिवहन आयुक्त ने यह कहते हुए जानकारी देने से इंकार कर दिया था कि जानकारी देने से प्राइवेट कंपनी और मध्यप्रदेश शासन के वाणिज्यिक हित प्रभावित होंगे। विदित हो कि करोड़ो रूपए का घोटाला छुपाने की दृष्टि से परिवहन आयुक्त ने प्राइवेट कंपनी स्मार्ट चिप को किये जाने वाले भुगतान की जानकारी देने से इंकार किया था। यह पूरा मामला परिवहन विभाग में स्मार्ट चिप लिमिटिड, जो कि एक प्राइवेट कंपनी है जिस पर विभाग के समस्त कार्यो के कंप्यूटरीकरण करने का ठेका है को अधिक दरों पर ठेका दे कर सेकड़ो करोडों रूपए के भ्रष्टाचार का है जिसमे परिवहन विभाग के समस्त आला अफसर सम्मिलित है इसी मामले को दबाने के लिए जानकारी देने से इंकार किया गया था इस पूरे मामले की शिकायत विजय शर्मा पूर्व में प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह और परिवहन आयुक्त इत्यादि सभी जगह कर चुके है।

अपीलार्थी को 15 दिवस में नि:शुल्क प्रदान करना होगा जानकारी
राज्य सूचना आयोग के आयुक्त ने 1 अगस्त 16 को सुनवाई के दौरान अनुपस्थित रहने के चलते अपीलीय अधिकारी व लोक सूचना अधिकारी परिवहन आयुक्त ग्वालियर को फटकार लगाने के साथ राज्य सूचना आयोग को जानकारी न देने की अलग वजह और आवेदक को अलग वजह बताने पर भ्रामक जानकारी देने पर भी परिवहन आयुक्त के प्रति नाराजगी व्यक्त की साथ ही कहा कि अपीलार्थी को पंद्रह दिवस के अंदर उक्त चाही गई जानकारी नि:शुल्क प्रदान की जाए एवं इस जानकारी से राज्य सूचना आयोग को भी अवगत कराया जाए।